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(१४०) 'पद्मलेश्यावाले जीव करते हैं और तिर्यंच गति, तिर्यंच आयु, तिर्यंच आनुपूर्वी, और उद्योत इन चारको छोड़कर ( १०५ मेंसे ) १०१ प्रकृतियोंका बंध शुक्ललेश्यावाले जीव करते हैं ।
साधारणतः मिथ्यात्वगुणस्थानमें ११७ प्रकृतियोंका बन्ध होता है; परन्तु लेश्याके सम्बन्धसे यह विशेषता होती है । अर्थात् पीतपद्मशुक्ललेश्यावाले जीवोंके ११७ से कम प्रकृतियोंका बन्ध होता है ।
चौरासी लाख योनियां। सात लाख पृथ्वीकाय सात लाख अपकाय, सात लाख तेजकाय सात लाख वात है। सात लाख नित्य औ इतर सात साधारन, दस लाख परतेक इकइंद्री गात है ॥ वे ते चव इंद्री दो दो मानुष चौदह लाख, नर्क स्वर्ग पसु चारि चारि लाख जात है। चवरासी लाख जात मो ऊपर छिमा करौ, हमहू. छिमा करी वैर किए घात है ॥१६॥
अर्थ-पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय, नित्य निगोद और इतर निगोद ( साधारण ) जीवोंकी सात सात लाख प्रकारकी जातियां या योनियां हैं । तथा प्रत्येक वनस्पति जीवोंकी दश लाख जातियां हैं । इस तरह एकेन्द्री जीवोंकी ५२ लाख जातियां हैं । दोइंद्रिय, तेइंद्रिय और