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चौइंद्रिय जीवोंकी दो दो लाख, मनुष्यों की चौदह लाख और नारकियों, देवों तथा पशुओंकी चार चार लाख जातियां हैं । इस तरह सब ५२+६+१४+१२-८४ लाख जातिके जीव मुझपर क्षमा करें । मैं भी उनपर क्षमा भाव रखता हूं। क्योंकि क्षमाका विरुद्ध भाव जो वैर है, उसके करनेसे घात होता है-भव भवमें दुःख सहना पड़ते हैं । वे त्रेसठ कर्मप्रकृतियां कि जिनका नाश होनेपर केवलज्ञान होता है।
नर्क पसू गति आनुपूरवी प्रकृति चारि, पंचेंद्रिय बिना चारि आतप उदोत हैं। साधारन सूच्छम औ थावर प्रकृति तेरै, नर आव विना तीनि मिलि सोलै होत हैं । सैंतालीस घातियाकी त्रेसठि प्रकृति सब, नासि भए तीर्थकर ग्यानमई जोत हैं। देवनके देव अरहंत हैं परम पूजि, तिनहीको बिंब पूजि होहिं ऊंच गोत हैं॥९७॥
अर्थ-१ नरक गति, २ तिर्यंच गति, ३ नरकगत्यानुपूर्वी, ४ तिर्यचगत्यानुपूर्वी, पंचेन्द्रियको छोड़कर शेष चार इंद्रियां अर्थात् ५ एकेन्द्री, ६ दोइंद्रिय, ७ तेइंद्रिय, ८ चौइंद्रिय, ९ आतप, १० उद्योत, ११ साधारण, १२ सूक्ष्म और १३ स्थावर इन तेरहमें नर आयुको छोड़कर शेष तीन आयु मिलानेसे' अर्थात् नरक आयु, तिर्यंचायु और देव आयु