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(१३७) आहारक दोय दोय औदारिक नारि नर, छहौं बिना इक्यावन नर्कमैं प्रपंच है। चारौं गतिमाहिं ऐसैं आस्रव सरूप जान, नमौं सिद्ध भगवान जहां नाहिरंच है ॥१३॥
अर्थ-मनुष्यगतिमें वैक्रियिक और वैक्रियिक मिश्र इन दोको छोड़कर शेष ५५ आस्रवद्वार सामान्यतासे हैं । तिर्यचगतिमें आहारक और आहारक मिश्र इन दोको (५५ मेंसे ) छोड़कर ५३ आस्रवद्वार हैं । देवगतिमें औदारिक,
औदारिक मिश्र, आहारक, आहारक मिश्र, और नपुंसकवेद इन पांचको छोड़कर (५७ मेंसे ) ५२ आस्रवद्वार हैं । नरक गतिमें आहारक, आहारकमिश्र, औदारिक, औदारिक मिश्र, स्त्रीवेद और पुरुषवेद इन छहको छोड़कर.५१ आस्रवद्वार हैं । इस तरह चारों गतियोंमें आस्रव द्वारोंका स्वरूप जानना चाहिये । उन सिद्धभगवानको नमस्कार है, जिनके कर्मोंका आस्रव रंच मात्र भी नहीं होता है ।
चारों गतियोंमें त्रेपन भाव । सासतौ सुभाव पंचभाव सिद्ध वंदत हौं, तीनौं गति बिना नरकै पचास दीस हैं । छायकके आठ समकित बिना मनपर्जें, चारित दो ग्यारै बिन पसु उन्तालीस हैं॥ सुभलेस्या तीनि नरनारिवेद देसव्रत,