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१३ । सिद्धालयमें पांच भाव होते हैं-सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, बल और जीवत्व । हे आत्मन्, निश्चयसे तू आपको सिद्धके समान समझ । . अब यहां यह बतलाया जाता है कि त्रेपन भाव कौन कौन हैं:-भावोंके मूलभेद ५ हैं-औपशमिक, क्षायिक, मिश्र, औदयिक और पारिणामिक । औपशमिकके दो भेद हैं-उपशम सम्यक्त्व और उपशम चारित्र । क्षायिकके नव भेद हैं-क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक ज्ञान, क्षायिक दर्शन, क्षायिक चारित्र, क्षायिक दान-लाभ-भोग-उपभोग, वीर्य । क्षायोपशमिक या मिश्रके १८ भेद हैं-मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय, कुमति, कुश्रुत, कुअवधि, चक्षु दर्शन, अचक्षु दर्शन, अवधि दर्शन, क्षायोपशमिक दान-लाभ-भोगउपभोग-वीर्य ( क्षायोपशमिक लब्धि ), क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, क्षायोपशमिकचारित्र, और संयमासंयम । औदयिकके २१ भेद हैं:-४ गति, ४ कषाय, ३ लिंग, मिथ्यादर्शन, अज्ञान, असंयत, असिद्धत्व और ६ लेश्या । पारिणामिकके तीन भेद हैं-जीवत्व, भव्यत्व, और अभव्यत्व । __चारों गतियोंमें आस्रवद्वार ।
सवैया इकतीप्ता। वैक्रियक दोय बिना नर पचपन द्वार, आहारक दोय बिना त्रेपन तिर्जंच है।
औदारिक दोय दोय आहारक षंढवेद, पांच बिना देवनिकै बावनकौ संच है ॥