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(५.) . अकृत्रिम चैत्यालयोंकी प्रतिमाओंकी स्तुति । बन्दों आठ किरोर, लाख छप्पन सत्तानौ। . सहस च्यारि सौ असी, एक जिनमंदिर जानौ॥ नव सै पच्चिस कोरि, लाख त्रेपन सत्ताइस। . बंदों प्रतिमा सर्व, नौ सौ अड़तालिस ॥ - व्यंतर जोतिक अगणित सकल,
चैत्यालय प्रतिमा नौं। . - आनंदकार दुखहार सब,
फेरि नहीं भववन भमौं ॥३॥ अर्थ-मैं तीनों लोकोंके आठ करोड, छप्पन लाख, सत्तावन हजार, चारसौ इक्यासी ८५६५७४८१ अकृत्रिम जिन मंदिरोंकी बन्दना करता हूं और फिर उन जिन मन्दिरोंमें की नौ सौ पच्चीस करोड त्रेपन लाख सत्ताइस हजार नौ सौ अडतालीस ९२५५३२७९४८ प्रतिमाओंकी बन्दना करता हूं । इनके सिवाय व्यन्तर भवनोंमें तथा ज्योतिषियोंके विमानोंमें जो असंख्यात प्रतिमाएं हैं, उन्हें नमस्कार करता हूं, जिससे फिर इस संसाररूपी वनमें भ्रमण नहीं करना पडे । वे सब मन्दिर और प्रतिमाएं आनन्दकी करनेवाली और दुःखोंकी हरनेवाली हैं।
सिद्धस्तुति । लोकईस तनुवात सीस, जगदीस विराजें। एकरूप वसुरूप, गुन अनंतातम छाडें ।