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( ४ ) अर्थ-मैं उन बीसवें तीर्थंकर श्रीनेमिनाथ भगवानको नमस्कार करता हूं, जो चन्द्रमाके समान सब जीवोंको . सुखके देनेवाले हैं, और जिनकी बन्दना करके बलभद्र और श्रीकृष्णनारायणके मुकुटोंमें लगी हुई मणियोंने अतिशय शोभा पाई है अर्थात् जिस समय बलनारायण नमस्कार करनेके लिये अपना मस्तक नवाते थे, उस समय उनके मुकुटोंके रत्न भगवानके चरणोंके नखोंकी कांतिसे और भी अधिक चमकने लगते थे, जिनका व्यंतर देवोंके बत्तीस, भवनवासियोंके चोलीस, ज्योतिष्कोंके दो सूर्य चन्द्र, मनुष्योंका एक चक्रवर्ती, पशुओंका एक सिंह और कल्पस्वर्गोंके. चौवीस इस प्रकार सब मिलाकर सौ इन्द्र ध्यान करते हैं,
और इसलिये हे जिनदेव आप सब देवोंके सिरदेव अर्थात् शिरोमणि देव हैं, गणधरादि सुगुरुओंके गुरुराज हैं, और अनन्तानन्त गुणोंके समूहरूप हैं । आप मेरे हालपर अर्थात् संसार भ्रमणकी दुर्दशापर दयालु हूजिये-मुझे कृपाकरके. इस दुःखसे छुड़ा दीजिये।
1 नववें पद्म नामक बलभद्र। २ नव नारायण । । व्यन्तर आठ प्रकारके हैं और उनके प्रत्येक भेदने दो दो इन्द्र तथा दो दो प्रतीन्द्र हैं. इस तरह बत्तीस व्यन्तरेन्द्र । ४ भवनवासी दश प्रकारके हैं और प्रत्येकमें दो दो इन्द्र तथा प्रतीन्द्र हैं । ५ सूर्य प्रतीन्द्र है और चन्द्र इन्द्र है । ६ पहिले चार स्वर्गों में चार इन्द्र और चार प्रतीन्द्र-८, पांचवें छ?में १ इन्द्र, १ प्रतीन्द्र-२, सातवें आठवेंमें १ इन्द्र, १ . प्रतीन्द्र=२, नववेसे बारवें तकमें २ इन्द्र, २ प्रतीन्द्र-४, तेरहवेंसे सोलहवें तकमें ४ इन्द्र ४ प्रतीन्द्र=८, इस तरह १६ स्वर्गों में २४ इन्द्र हैं।