________________
(१२६) नर पसुजीव नर्क पसु नर आव बंध, चौथतें आगें चढ़िवकों न सकति गही। चारौं आव तीजे गुनथानकमैं बंध नाहि,
आव नास भए सिद्ध तिनकौं बंदौं सही ॥८६॥ अर्थ-नरक आयुका बंध पहले मिथ्यात्व गुणस्थानमें होता है और उदय चौथे गुणस्थानतक होता है । पशुआयु या तिर्यंचायुका बंध दूसरे गुणस्थान तक अर्थात् पहिले और दूसरे गुणस्थानमें होता है और उदय पांचवें गुणस्थान तक होता है । मनुष्यायुका बंध चौथे गुणस्थानतक होता है और उदय चौदहवें तक रहता है । देवायुका बंध सातवें गुणस्थानतक होता है और उदय चौथे तक रहता है। किसी मनुष्य या पशु जीवने नरक पशु या मनुष्यकी आयु बांध ली हो, तो वह चौथे गुणस्थानसे आगे नहीं बढ़ सकता है-उसके परिणामोंकी इतनी बढ़नेकी शक्ति नहीं हो सकती है । उपर्युक्त चारों आयुओंका बंध तीसरे मिश्र गुणस्थानमें नहीं हो सकता है, ऐसा नियम है । जो महात्मा इन चारों आयुओंका नाश करके सिद्ध पदको प्राप्त हो गये हैं, उनकी मैं बन्दना करता हूं। आठ स्थानोंमें निगोद नहीं, चार स्थानों में सासादन जीव
_ नहीं जाते, आदि कथन । भूमि नीर आगि पौन केवली औ आहारक,
जिस मुनिने देवगतिका बंध कर लिया हो, वह आगे ग्यारहवें गुणस्थान तक चढ़ सकता है; परन्तु देवगतिका बंध सातवें गुणस्थानतक ही होता है।