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१६ भय, १७ जुगुप्सा, १८ स्त्रीवेद, १९ पुरुषवेद, २० नपुंसकवेद, २१ एकेन्द्रिय; विकलत्रय अर्थात् २२ दोइंद्रिय २३ तेइंद्रिय, २४ चौइंद्री, २५ स्थावर, २६ आतप, २७. उद्योत, २८ सूक्ष्म, २९ साधारण; तीनों निद्रा अर्थात् ३० निद्रानिद्रा, ३१ प्रचलाप्रचला, ३२ स्त्यानगृद्धि, ३३ नरक गति, ३४ पशुगति, ३५ नरकगत्यानुपूर्वी और ३६ तिर्यंच. गत्यानुपूर्वी इन ३६ प्रकृतियोंका नववें गुणस्थानमें क्षपकश्रेणीवाला मुनि सत्तासे नाश करता है ।
जिनवाणीकी संख्या । सोलह से चौंतीस किरोर लाख तेरासिय, अठत्तरसै अठासी अच्छर ए लेखिए । इक्यावन कोर आठ लाख सहस चौरासी. छसै साढ़े इकईस ए सिलोक पेखिए ॥ ताको पद इक जोर इकसौ बारै किरोर, तेरासी लाख सहस अट्ठावन देखिए । पंच पद एते सब द्वादसांग जिनवानी, बर्दै मन लाय भेदग्यानकौं विसखिए॥४॥ अर्थ-इस पद्यमें द्वादशांगरूप जिनवाणीके अक्षरों, श्लोकों और पदोंकी गिनती बतलाई है । केवली भगवानके द्वारा जो वाणी खिरी थी और गणधरदेवने जिसे धारण करके