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अर्थात मिथ्यात्व अवस्थामें चारों आयुओं में से जिस आयुका बंध किया हो, उसीको प्राप्त होता है । पांचवेंसे लेकर ग्यारहवें गुणस्थानतक सात गुणस्थानों में यदि जीव मरता है, तो नियमसे स्वर्ग जाता है ।
जो चौदहवें गुणस्थानको छोड़कर एक समयमें जरा मरण से रहित मोक्षपदको प्राप्त करते हैं, उनकी मैं बन्दना करता हूं । नवमें गुणस्थान में ३६ प्रकृतियों का क्षय । सवैया इकतीसा |
प्रत्याखानी चारि औ अप्रत्याखानी चारि भेद, संजुलन तीनि नव नोकषाय जानिए । एकेंद्री विकलत्रै थावर आतप उदोत, सूच्छम औ साधारन जीवनिक मानिए ॥ निद्रानिद्रा प्रचलाप्रचला अरु थानगृद्धि, नींद तीनों महाखोटी कबहूं न ठानिए । नर्क पसु गति आनुपूरवी प्रकृति चारि,
मैं गुणथानक मैं ए छतीस मानिए ॥ ८३ ॥ अर्थ-प्रत्याख्यानी चार अर्थात् प्रत्याख्यानी १ क्रोध, २ मान, ३ माया, ४ लोभ; अप्रत्याख्यानी चार अर्थात् ५ अप्रत्याख्यानी क्रोध, ६ मान, ७ माया, ८ लोभः संज्वलन तीन अर्थात् ९ संज्वलन क्रोध, १० माया, ११ मान; नौ नोकषाय अर्थात् १२ हास्य, १३ रति, १४ अरति, १५ शोक,