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नौ हजार नौसै चौवन भाग कहे तहां, सौमनस व्यालीससै बहत्तर रहा है ॥ पांडुक हजार एक बीच बारै चूलिका है, चौसै चौरान वन पांडुक सरदहा है। सौमनस नंदन हैं पांचसैके, भद्रसालबाईस हजार पुव्व पच्छिममैं कहा है ॥८१॥
अर्थ-मेरु पर्वतका विस्तार गोल है । चित्रा पृथ्वीके नीचे मेरुकी जड़ दश हजार नव्वे (१००९०) योजनकी चौड़ी है । और ऊपर जहां भद्रशालवन है वहां उसकी चौड़ाई दश हजार योजनकी है । इस तरह जड़के नीचेसे चित्रा पृथ्वीतक मेरुकी चौड़ाई क्रमसे कम होती होती ९० योजन कम हो गई है । भद्रशालवनसे ५०० योजनकी ऊंचाई पर नन्दन वन है, वहां मेरु*९९५४ योजन और कुछ भाग () अधिक चौड़ा है अर्थात् वहां उसकी चौड़ाई कुछ कम ४६ योजन घटी है । नन्दन वनसे ६२५०० योजनकी ऊंचाई पर सौमनस वन है। इस ऊंचाईमेंसे प्रारंभकी दश हजार योजनकी ऊंचाई तक तो मेरुकी चौड़ाई एकसी है-घटी नहीं है। परन्तु आगे ५२५०० योजनमें वह क्रमसे घटी है और सौमनस वनपर ___ * इसमें दोनों नन्दनवनोंकी पांच पांच सौ योजनकी चौड़ाई भी शामिल है । मेरुकी चौड़ाई यहांपर ८९५४ योजन है ।