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(११८) तहां वन पांडुक चैताले चारि सब सोलै, मनवचकायसेती बंदों पाप हान हैं ॥ ८०॥
अर्थ-सुमेरु पर्वतकी ऊंचाई एक लाख योजनकी है,. जिसमेंसे जड़से अर्थात् भूमिके ऊपरी भागपरसे ऊपर ( भद्रशालवनसे पांडुकवनतक ) ९९ हजार योजन ऊंचा है । रहे एक हजार योजन, सो इतनी उसकी जड़ है । यह जड़ चित्रा पृथिवीसे नीचे है । पांडक वनसे ऊपर चालीस योजन ऊंची. चूलिका है, जिसके ऊपरके भागका सौधर्म स्वर्गके ऋजु विमानसे केवल एक बालके बराबर अन्तर है । नीचे अर्थात् मेरुकी चौगिर्द भूमिपर या चित्रा पृथ्वीके ऊपर भद्रशाल नामका वन है, जिसपर मेरुकी चारों दिशाओं में चार जिनमंदिर हैं । इस भद्रशालसे पांचसौ योजनकी ऊंचाई पर मेरुकी चारों दिशाओंमें ४ नन्दन वन हैं और उनमें ४ अकृत्रिम चैत्यालय हैं । नन्दनवनोंसे ६२ हजार योजन की ऊंचाई पर ४ सौमनस नामके वन हैं और उनमें भी ४ चैत्यालय हैं । इससे आगे ३६ हजार योजनकी ऊंचाईपर ४ पांडुक नामके वन हैं और उनमें भी ४ जिनचैत्यालय हैं । इस तरह उक्त चार नामके सोलह वनोंमें जो १६ चैत्यालय हैं, वे पापके नाश करनेवाले हैं। उनकी मैं मनवचनकायपूर्वक बन्दना करता हूं।
मेरुपर्वतका पूर्वपश्चिमविस्तार। मेरु गोल जड़तलैं दसहजार नब्बैकौ, भूममैं हजार दस, नंदनपै लहा है ।