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भिन्नसमयवर्ती जीवोंके परिणाम सदा विसदृश ही हों और एक समयवर्ती जीवोंके सदृश हो और विसदृश भी हों, उसको अपूर्वकरण कहते हैं । और जिसमें भिन्नसमयवर्ती जीवोंके परिणाम विसदृश ही हों और एक समयवर्ती जीवोंके सदृश ही हों, उसे अनिवृत्तिकरण कहते हैं । ये तीनों प्रकारके परिणाम उत्तरोत्तर अधिक अधिक विशुद्ध होते जाते हैं, इसीसे इनमें परस्पर भेद माना गया है । इन तीन करणोंके कर चुकनेपर सम्यक्त्व होता है ।
नन्दीश्वर द्वीप। एकसौ तिरेसठ किरोर चवरासी लाख, जोजनका चौंरा दीप बावन पहार हैं। दिसा चारि अंजन जोजन चौरासी हजार, सोलै दधिमुख जोजन दस हजार हैं ॥ रतिकर हैं बत्तीस जोजन हजार एक, लंबे चौरे ऊंचे सब ढोलके अकार हैं। सबपर जिनभौन बावन विराजत हैं, वर्ष तीन बार देव करें जै जैकार हैं ॥७९॥
अर्थ-इस पद्यमें आठवें नन्दीश्वर द्वीपकी रचनाका वर्णन है । इस द्वीपकी चौड़ाई १६३८४००००० योजन है। इसके भीतर ५२ पर्वत हैं । चारों दिशाओंमें चार तो