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(११४) कालपरावर्तन करना पड़ते हैं । अनन्त संख्याके अनन्त भेद हैं। जितने समयमें एक कालपरावर्तन पूरा होता है, उतनेमें अनन्त क्षेत्रपरावर्तन हो जाते हैं। एक क्षेत्रके बाँधे हुए कर्म दूर करनेको अनन्त पुद्गलपरावर्तन करना पड़ते हैं । इस तरह जीव आप पंचपरावर्तनरूप फेरामें अर्थात् चक्कर में पड़ा है-अनन्त बार जन्मता है और अनन्त बार मरता है। जिनके अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोम और मिथ्यात्व, सम्यमिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृतिमिथ्यात्व इन सात प्रकृतियोंका विनाश हो गया है; अतएव क्षायिक सम्यक्त्वका प्रकाश हो गया है, वे ही जीव इस द्रव्यक्षेत्रकालभवभावरूप पंच परावर्तनों के चक्करसे निकल पाते हैं ।
__ पांच लब्धियां। थावरतें सैनी होय ए ही खय उपसम है, दान पूजा उद्यत विसोही उपयोग है। गुरु उपदेस तत्त्वग्यान सो ही देसना है, अंत कोराकोरी कर्मकी थिति प्रायोग है। जगमैं अनंत बार चारि लब्धि पाई इनि, कर्नलब्धि विना समकितको न जोग है। अधों अपूरव अनिवृत्त कर्न तीन करें, मिथ्यामाहिं पीछे चौथा सम्यक नियोग है ७८