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(११२) करनेको एक स्वक्षेत्रपरावर्तन कहते हैं । सुमेरु पर्वतकी जड़के नीचे मध्यके आठ प्रदेश हैं । उन आठ प्रदेशोंको अपने शरीरके आठ मध्य प्रदेश बनाकर जघन्य अवगाहनको धारण करके उत्पन्न हो तथा उसी अवगाहनाको लेकर जितने उसके आत्मप्रदेश हैं उतनी ही बार जन्म मरण करे । इसके बाद उनसे एक एक प्रदेश हटकर क्रमपूर्वक तीन लोकके असंख्यात प्रदेशों में जन्म मरण करनेका नाम एक परक्षेत्रपरावर्तन है । स्वक्षेत्र और परक्षेत्रपरावर्तनके कालके जोड़को एक क्षेत्रपरावर्तनका काल समझना चाहिये। इस क्षेत्रपरावतेनके कालका अनन्तवाँ भाग काल पुद्गलपरावर्तनका है । अनन्त कर्म और नोकर्म पुद्गलपरमाणुओंको क्रमपूर्वक एकके बाद एक ग्रहण करके छोड़नेको एक पुद्गलपरावर्तन कहते हैं । इसका दूसरा नाम द्रव्यपरावर्तन भी है।
पुद्गलपरावर्तनके आधे कालको अर्धपुद्गलपरावर्तन कहते हैं । यह जीव संसारमें मिथ्यात्व परिणामसे अनन्तवार अनन्त परावर्तन करता है । जब इसका अर्धपुद्गलपरावर्तन काल बाकी रह जाता है, तब ज्ञानी जानता है कि इसकी काललब्धि आ गई है-इसकी योग्यता सम्यक्त्वके उत्पन्न होनेकी हो गई है । यदि अधेपुद्गलपरावर्तनसे एक समय भी अधिक भ्रमण शेष रहा हो, तो सम्यक्त्वकी उत्पत्ति नहीं हो सकती है। ऐसा नियम है । जिस जीवको सम्यक्त्व हो जाता है, वह अन्तर्मुहूर्तसे लेकर धपुद्गलपरावर्तनके कालके भीतर किसी भी समयमें अवश्य मुक्त हो जाता है ।