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(९४) नर सुर आव च्यारि ऊंच नीच गोत है। नामकी तिरानू एक सत एक अघातिया, आदि तीन अंतराय थिति तीस होत है ॥ नाम गोत बीस मोहनी सत्तरि कोराकोरी, दधि आवकी सागर तेतीस उदोत है। वेदनी चौवीस घरी सोलै नाम गोत पांचौं, अंतर मुहूरत, विनासैं ग्यानजोत है ॥६७॥ अर्थ-वेदनीय कर्मकी साता औ असाता ये २ प्रकृतियां, आयुकर्मकी नरकायु, तिर्यगायु, मनुष्यायु और देवायु ये ४ प्रकृतियां, गोत्र कर्मकी उच्चगोत्र और नीचगोत्र ये २
और नामकर्मकी ९३ इस तरह चार अघाती कौकी सब मिलाकर १०१ प्रकृतियां हैं ।
आदिके तीन कर्म अर्थात् ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, और वेदनीय और अन्तका अन्तराय; इन चारोंकी उत्कृष्ट स्थिति ३० कोड़ाकोड़ी सागरकी है । नाम कर्मकी और गोत्र कर्मकी २० कोड़ाकोड़ी सागरकी, मोहनीयकी ७० कोड़ाकोड़ी सागरकी और आयु कर्मकी ३३ सागरकी उत्कृष्ट स्थिति है । वेदनीय कर्मकी जघन्य स्थिति २४ घड़ी अर्थात् बारह मुहूर्त, नाम कर्म और गोत्र कर्मकी सोलह सोलह घड़ी, और शेष ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अन्तराय और आयुकर्म इन पांचोंकी अन्तर्मुहूर्त