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(९५) है। ज्ञानज्योति अर्थात् ज्ञानी महात्मा इन सबका नाश करते हैं।
नामकर्मकी ९३ प्रकृतियां । तन बंधन संघात वर्ण रस जात पंच, संसथान संहनन षट आठ फास हैं। गति आनुपूरवी है चारि दो विहाय गंध, अंग तीनि पैंसठि ये त्रस थूल भास हैं । पर्यापति थिर सुभ सुभग प्रतेक जस, सुसुर आदेय दो दो निरमान स्वास हैं। अपघात परघात अगुरु लघु आताप, उदोत तीर्थकरकौं बन्दों अघनास है ॥६॥
अर्थ-नाम कर्मकी ९३ प्रकृतियां हैं, जिनमेंसे ६५ पिंडप्रकृतियां हैं और २८ अपिंडप्रकृतियां हैं । पिण्डप्रकृतियां उनको कहा है कि जो एक एक भेदमें अनेक अनेक पाई जाती हैं। जिनके जुदा जुदा स्वतंत्र नाम गिनाये गये हैं वे अपिंडप्रकृति कही जाती हैं । पहले अपिंड प्रकृतियां बतलाते हैं । पांच तन अर्थात् शरीर कर्म-१औदारिक शरीर, २ वैक्रियिक शरीर, ३ आहारक शरीर, ४ तैजस शरीर, और ५ कार्मण शरीर । पांच बन्धन कर्म-१ औदारिक बन्धन, २ वैक्रियिक बन्धन, ३ आहारक बन्धन, ४ तैजस बन्धन, ५ कार्माण बन्धन । पांच संघात हैं:-१ औदारिक