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हास्य रति अरति सोक भय जुगुपसा, नारी नर पंढ पचीस चारितको छोभ है । मिथ्यात समै मिथ्यात समै प्रकृतिमिथ्यात,
तीनौं दर्सनमोह दर्सनको चोभ है। . अठाईस मोहनीय जीवनिकौं मोहत हैं, .
नासै जथाख्यात सम्यक छायक सोभ है॥६६॥ अर्थ-मोहनीय कर्मके २८ भेद हैं, जिनमेंसे २५ चारिमोहनीयके हैं और ३ दर्शनमोहनीयके हैं। १ अनन्तानुबंधी-क्रोध, २ मान, ३ माया, ४ लोभ, ५ अप्रत्याख्यानावरणीय-क्रोध, ६ मान, ७ माया, ८ लोभ, ९ प्रत्याख्यानावरणीय-क्रोध, १० मान, ११ माया, १२ लोभ, १३ संज्वलन-क्रोध, १४ मान, १५ माया, १६ लोभ, १७ हास्य, १८ रति, १९ अरति, २० शोक, २१ भय, २२ जुगुप्सा ( ग्लानि ), २३ पुरुषवेद, २४ स्त्रीवेद, २५ नपुंसकवेद ये पच्चीस चारित्रमें क्षोभ करनेवाले चारित्रमो. हनीयके भेद हैं । १ मिथ्यात्व, २ सम्यग्मिथ्यात्व, और ३ सम्यक्प्रकृति ये तीन दर्शनमें चुभनेवाले दर्शनमोहके भेद हैं । इस मोहनीय कर्मके नाश होनेपर यथाख्यात संयम अथवा क्षायिक चारित्रकी प्राप्ति होती है। इन गुणोंसे जीव शोभायमान होता है। अघाती कर्मोंकी १०१ प्रकृतियां और आठ कर्मों की स्थिति। साता औ असाता दोइ वेदनी नरक पसु,