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की ५, अन्तरायकी ५, दर्शनावरणीयकी ४, निद्रा १ और प्रचला १ ऐसे १६ घटाने से ८५ रहती हैं । चौदहवें गुणस्थान में अंत के समय से पूर्व समय में ७२ और अन्तमें १३ की सत्ता नाश करके अविनाशी सिद्ध होते हैं । उन्हें मैं नमस्कार करता हूं | वे १४७ राजू घनाकार लोकके ऊर्ध्वभागमें विराजमान होते हैं ।
अन्तर्मुहूर्तके जन्म मरणोंकी गिनती ।
भू जल पावक पौन साधारण पंच भेद, सूच्छम वादर दस परतेक ग्यार हैं । छैहजार बारे बारे जनम मरन धेरै, वे ते चौ इंद्री असी साठ चालिस धार हैं | चौइस पंचेंद्री सब छासठ सहस तीन, सै छत्तीस, से सैंतीस तेहत्तर सार हैं । छत्तीस पचासी स्वास अधिक तीजा अंस, नौ नाथ मोहि सब दुखसौं उधार हैं ॥ ६४ ॥ अर्थ- अलब्धपर्याप्तक जीवोंके अन्तर्मुहूर्तमें कितने जन्म मरण होते हैं, यह इस पद्यमें बतलाया है । जो जीव एक भी पर्याप्त पूर्ण नहिं कर पाता है, किंतु मुहूर्तके भीतर हीपर्याप्त पूर्ण होनेसे पहले ही मर जाता है, उसे अलब्धपर्यातक या लब्ध्यपर्याप्तक कहते हैं । पृथ्वीकाय, जलकाय,