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अर्थ-बाँधेहुए कर्म जबतक उदयमें नहीं आते हैं किंतु ज्योंके त्यों बद्ध बने रहते हैं तब तक उस अवस्थाको सत्ता कहते हैं । पहले और चौथे गुणस्थानमें १४८ प्रकृतियोंकी सत्ता है । दूसरे गुणस्थानमें तीर्थकर, आहारक शरीर, और आहारक अंगोपांग इन तीनको छोड़कर १४५ की सत्ता है । तीसरेमें तीर्थकर प्रकृतिको छोड़कर और पांचवेंमें नरकायुको छोड़कर १४७ प्रकृतियोंकी सत्ता है । छठे सातवेंमें और उपशमश्रेणीके आठवें, नववें, दशवें और ग्यारहवेंमें नरकायु
और तिर्यगायुको छोड़कर १४६ की सत्ता है । क्षपकश्रेणीवाले आठवें, नववे गुणस्थानोंमें ४ अनंतानुबंधी, ३ मिथ्यात्व और ३ आयु ( देव पशु और नारक ) को छोड़कर १३८ की सत्ता है । क्षपकश्रेणीवाले दशवेंमें १०२ की सत्ता है । नववेंमें जो १३८ का सत्य है, उसमेंसे ये ३६ व्युच्छिन्न प्रकृतियां घटानेसे १०२ होती हैं:-तिर्यग्गति १, तिर्यग्यत्यानुपूर्वी १, विकलत्रय ३, निद्रानिद्रा १, प्रचलापचला १, स्त्यानगृद्धि १, उद्योत १, आतप १, एकेन्द्रिय १, साधारण १, सूक्ष्म १, स्थावर १, अप्रत्याख्यानावरण ४, प्रत्याख्यानावरण ४, नोकषाय ९, संज्वलन क्रोध १, मान १, माया १, नरकगति १ और नरकगत्यानुपूर्वी । बारहवेमें १०१ प्रकृतियोंकी सत्ता है । पिछली १०२ मेंसे एक सूक्ष्मलोभकी सत्ता घट जाती है । आगे तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानमें 'पंदै टालसौ-सौमेंसे पन्द्रह कम अर्थात् ८५ प्रकृतियोंकी सत्ता है । उपर्युक्त १०१ मेंसे ज्ञानावरणीय