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3.69.1
1.16.21 2.181.1 2.188.1 2.59.1 1.7.1
2.254.1
सर्पद्रिस्तव दिग्जय सर्वमः सर्वलो सर्वथा विरञ्चि सर्वातिरिक्त लावण्यं सैर्देवैः स वः पातु कुन्द स श्रेयांसि श्रेयांसः सस्पृह इव त्वयि सह धनुषा समदो सा काऋत्यन्यमेव साधुचरणाम्भोज साधु समाधाववि सारङ्गाणां न कुल सिंहावलोकितार्थेषु सितमहसि धवल सिद्धनरेन्द्रनन्दन सुनिश्चितं नः पर सुभग तव नव सुभग त्वयि दूर सुभग सुखदं सुभग हे सरभसं सुभ्र भवदीय सुरासुरशिरोनिघृष्ट सुरासुरशिरोरत्न सेयं साकाला त्वयि सैहिकेयमय सौम्यतस्याः किं
छन्दोऽनुशासनम् । 2.124.1 | सौरभपाण्डिम .
1.3.1 स्कन्धे विन्ध्याद्रि 8.22.1 | स्खलितवचसि 3.39.13 | स्तनितघोरघोषा 2.15.1 | स्पर्शनमात्रवशात् 2.38.1 | स्पृष्टं त्वयेत्यप 2.52.1 | स्फीतनव्यगन्धलुब्ध 2.238.1 | स्फुटदुज्वलबकु 2.351.1 | स्फुरति च दक्षिण 2.339.1 | स्फूर्जति संगरप्रदोषे
2.26.1 | स्मर इव शयितः 2.122.1 स्मितबकुलशिरीष 2.306.1 | स्यादस्थानोपगत 7.57.2 | स्याद्वादामृतमुदिते 2.192.1 | खभर्तृभक्ता 2.274.1 खखागमाचार
1.1.3 | खादु खच्छं च सलिल 3.30.1 | स्वामिन् जिनवर 2.395.1 | हताद्वार्योचितात् 2.207.1
| हत्वा हत्वाधमन्येन 3.59.6 | हरन् सर्वो भोज 2.92.1 || हस्ताक्षेपैरिवारं 1.16.17 | ह हा पान्थस्त्रीभिः
1.16.4 | हासो हस्ताग्रसं 2.327.1 | हृतहृदयः खलु 2.161.1 | हृदि प्रविष्टा 3.51.1 हीविनियन्त्रण
2.316.1 2.255.1 2.282.1 .3.16.1 2.401.1 1.16.18 2.110.1
2.27.1 2.154.1 1.16.26 3.41.1
8.7.4
8.7.3 2.286.1 2.359.1
2.51.1 1.16.11 2.195.1
3.60.4 2.355.1
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