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________________ INDEX OY SANSKRIT STANZAS 2.314.1 1.2.1 8.39.11 2.319.1 2.226.1 3.19.1 बोधितापि रम्यैः भज धर्म भवगुणकया भवञ्चरणयोः भवशतविरचित भाति मूदुपाणि भाति सुवदने भुवनजैत्रमत्रं भुवने दधदेक भूमिभृतामङ्केषु भृशमात्मवत: भैमे भवदरि भ्रमर सखे व्रज भातर्दृष्टा भ्रान्तगृध्रवृन्द भ्राम्यद्रमर भूविलासदूरी मकरकेतुभट मञ्जीरकणित मणिरसनाखनितात् 'मत्तद्विरेफपुंस्को पत्तालीनां स्निग्ध मदनगजेन्द्रमहोदय मदनखिलोचन मदमुखर मधुसहचरीह मध्ये मताझ्या मनसिजलीला मनोमिरामाः मन्दायन्ते न खलु मम लावन्मतमेतदिह ममानीयत मनः 2.185.1 | मलयजरसलिप्त 2.21.1 | मत्रिगुरुनि 3,57.2 | महाकविं कालि 3.58.3 | मा कुरु संपदि 2.373.1 | माद्यद्गन्धद्विपानां 2.41.1 मानभृतामिदं 3.60.3 मामद्वैतानुरागां 2.70.1| मिथ्यादर्शनदिग्ध 3.56.1 मुक्तशेषविरो 2.363.1 मुखविपुलाः पर्यन्ते 2.85.1 मुश्चत नूपुर 2.102.1 | मृगनाभिविनि 2.180.1 | मृगरिपुः शशक 27.1 | मृत्युमुपैति यदा 2.144.1 ] मृदु वाच्य एष 2.189.1 यः श्लाघ्यः प्रतिदिन 2.108.1 यक्षश्चके जनक 3.12.1 | यतिः सर्वत्र पादान्ते (यत्यु०) 2.79.1 | यत् किंचिदृश्यते 2.80.1 | यत्प्रसादतो जय 4.6.2 यदसरलतरभू 2.285.1 यदि प्राप्तो बन्धं 2.361.1 | यदि वाञ्छसि कर्ण 2.153.1 | यदि सा बत 8.43.1 | यस्य न कापि कला 8.62.1| यस्य न कुलमपि 2.167.1| यस्य नैवार्थाः 2.39.1 यस्य प्रभावात् .. 3.99.14 या घनान्धकार 1.16.37 | यातोऽस्तं शशमृत् 6.20.43 | या बभूव सदा 2.29.1 | या मानमहाविष 2.225.1 2.97.1 3.39.9 4.4.1 2.3621 2.333.1 2.240.1 2.236.1 4.5.2 2.377.1 1.16.6 p.6 2.386.4 2.106.1 2.802.1 2.317.1 3.446 3.60.1 2.114.1 8.67.1 2.23.1 3.39.8 22.1111 - . 2.42.1 2.56.1 2.183.1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.090113
Book TitleChandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH D Velankar
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1961
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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