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________________ II. Index of Sanskrit Stanzas. अच्छिन्नप्रसराणि अजननिर्योषितां अतिरेकिवान् अदूरवर्तिनी अद्भुततुङ्गमूर्ति अद्भुतसंगरसागर अब कलहंसललने अद्यापि मधुः अधिगुणधनुर्दण्डं अधुना ध्वनति अधुना पञ्चेषोः अधुना भवदीय अनाकृष्टस्य विषयैः अनुदिनमपि हन्त अनुसर हिमकर अपयाहि पितामह अपरमणिगुण अपिसरिदधिपति अबहापि मधुरा अभिनवतरदुर्मदो अभिनवविकसित अभि नागान् याति अभ्यस्यता तु तरुणी अभ्यस्यतीव रस अमंस्त ते दुर्नय अम्भोजवनं व्याकोश अयमत्र नृपः अयमनुनीय सर्व अयमरण्यमहीष्वपि अयि जड यतिबन्धो 1.16.24 | अरतिमति हि मम 2.194.1 | अलिमलिने 3.46.1 | अलिवलयहुंकृति 3.89.15 | अविकलध्यानसंतान 2.271.1 | अविरलगुरुशाखि 2.341.1 | अविरलपुष्पबाण 2.383.1 | अविरलमदपाथो 3.65.1 | असमं दधन्नय 2.318.1 | अस्तमाश्रिततुषार 3.72.1 | अस्या वक्त्राब्जमव 2.50.1 | अस्या वक्त्रेन्दौ 3.53.1 | अह्नि विरहतप्ता 3.39.2 | आकल्पं कल्पयित्वा 2.257.1 | | आकाङ्क्षसि यदि 2.234.1 | आगतोऽसि धूर्त 2.267.1| आताम्रत्वं वपुषि 2.104.1 | आत्मारामपदैक 2.115.1 | आदिस्रष्टा यः सर्वेषां 1.16.34 | आद्यन्तल उपा - 2.387.1 | आपदि दीनमनो 3.30.2 | आपातलिका बत 2.354.1 | आलानितगज 2.91.2 | आवासः पर्णशाला 2.215.1 | आसाद्य प्रियमिह 3.9.1 | इति धौतपुरन्ध्रि 2.374.1 | इत्यौत्सुक्यादपरि. 3.3.1 | इदं वदनपनं 2.380.1 | इमां बालांत्रासा 2.337.1 | इयं सखे 2.200.1 | इह किमु विलसति 2.243.1 13.56.3 2.152.1 2.390.1 2.388.1 2.276.1 • 2.393.1 2.320.1 2:398.1 1.16.23 2.311.1 - 2.60. 2.334.1 2.149.1 3.59.4 2.107.1 2.221.1 .2.173.1 .. 1.3.4 2.93.1 3.55.1 3.34.1 2.345.1 -2.128.1 '2.289.1 1.16.28 2.54.2 2.324.1 3.39.7 2.315.1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.090113
Book TitleChandonushasan
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorH D Velankar
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1961
Total Pages444
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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