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सिरि भूवलय
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शास्त्र हमारे ज्ञान को भी गणना करता है, आपकी (हम से भिन्न जीव के ) भी गणना करता है । इस प्रकार यह गणित शास्त्र हमारे गौरव को बढ़ाता है। आपके गौरव को बढ़ाता है और सबके गौरव को बढ़ाता है।
भूवलय रचना चक्रबन्ध पद्धतिः-
इसकी पद्धति में (१) चक्रबन्ध, (२) हंसवन्ध, (३) शुद्धाक्षर बन्ध, (४) शुद्धांक वन्ध, (५) यक्षबंध ( ६ ) अपुनरुक्ताक्षर बंध (७) पद्म बन्ध (८) शुद्ध नवमांक बन्ध (६) वर पद्म बन्ध (१०) महा पद्म बन्ध ( १२ ) द्वीपबंध (१२) सागर बन्ध (१३) उत्कृष्ट पल्य बन्ध (१४) प्रवन्ध (१५) शलाका बन्ध (१६) श्रेण्यंक बन्ध (१७) लोकबन्ध (१८) रोम कूप बन्ध (१६) क्रौञ्च बंध (२०) मयूर बन्ध (२१) सीमातोत बंघ (२२) कामदेव बन्ध [२३] कामदेव पद पद्मवन्व [२४] कामदेव नख बन्ध [२५] कामदेव सीमातीत बन्ध [२६] सरितबन्ध [२७] नियम किरण बन्ध [ २८ ] स्वामी नियम बन्ध [२] स्वर्ण रत्न पद्म बन्ध [३०] हेमसिंहासन बन्ध [३१] नियमनिष्टाव्रत बन्ध [३२] प्रेमशेषविजय बंध [ ३३ ] श्री महावीर बन्ध] [३४] मही- प्रतिशय बंध [३५] काम गणित बंध [ ३६ ] महा महिमा बंध [३७] स्वामी तपस्त्री बंध [३८] सामन्तभद्रबंध [ ३६ ] श्रीमन्त शिवकोटि बंध [४०] उनकी महिमा तप्त [४१] कामित फल बंध [४२] शिवाचार्य नियम बंध | ४३ ] स्वामी शिवायन बंध [ ४४ ] नियमनिष्ठा चक्र बन्ध [ ४५] कामित बंध भूवलय "६० ६१ ६२ ६३ ६४ ६५.६६ ६७ ६५ १६ १०० १०१ १०२ १०३ १०८ १०५ १०६ १०७ १०८ ।
सर्वार्थ सिद्धि से बेंगलोर-दिल्ली
चक्र बंध की रचना की है। इसलिये इस बंध का नाम उत्तम संहतन चक्रबंध उत्कृष्ट शरीर का राग उस बाहुबली के शरीर संस्थान ४५ समचतुर संस्थान अर्थात् सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार अगोपांग की सबसे सुन्दर रचना की है। इस भूवलय ग्रन्थ के अनेक बंध हैं। इन सभी बंधों में से एक ४६ सूत्र वलय बंध है ४७ प्रथमोपशम सम्यक्त्व बंध, ४८ गुरु परम्परा आचाम्ल व्रत बंध, ४६ ऋतु तप बंध, ५० कोष्ठक बंध, अध्यात्म बंध, ५१ सोपसर्ग तथा तपो बंघ, ५२ (उपसगं आने पर भी तप जैसे उत्तरोत्तर वृद्धिगत होता है, उसी प्रकार वक्तव्य विषय में वाधा पड़ जाने पर भी अपने अपने अर्थ को स्पष्ट बतलाता है ) ५३ उत्तम सुपवित्र भाव को देने वाला सत्य बंभव बंध है, ५४ उपशम क्षयादि बंध है।
छह प्रकार के संहनन होते हैं, ४४ आदि का बंध उत्तम संहनन है । ४४ संहनन का अर्थ हड्डी की रचना है उत्तम संहनन का अर्थ वज्र के समान निर्माण हुए हड्डी और संधि बंधन इत्यादि जो चीजें हैं ये सभी वज्र के समान बने हुए हैं । यह संहनन तद्भव अर्थात् उसी भव में मोक्ष जाने वाले भव्य मनुष्यों को होता है । तदुद्भव मोक्षगामी वज्र समान संहनन वाले मनुष्य के शरीर को किसी मामूली शस्त्र के द्वारा काट नहीं सकते हैं। जैसे शरीर आदि भूवलय के कर्ता गोमटेश्वर अर्थात् वृषभनाथ भगवान के पुत्र बाहुबली का भी था। वही बाहुबली भूवलय ग्रन्थ के आदि कर्ता थे। उनका शरीर जैसा था वैसी ही दृढ़ इस भूवलय
५५ नव पद बंधन से बंधा हुआ योगी जनों का चारित्र बंध है । ५३ अवतरण रहित पुनरावृत्ति नवमांक बंध होने से यह सुबंध है । तेरहवाँ गुणस्थान प्रदान कर आत्मा के सार धर्म की राशि को एकत्रित कर वीर भगवान के अनन्त गुणों में सम्मिलन कर देने वाला यह भूवलय ग्रन्थ है ॥ १०६ ।।११०।१११।११२ ।। ११३ ॥
अनन्त पदार्थों से गर्भित यह भूवलय है शुद्धात्मा का सार यह भूवलय है घीर, वीर पुरुषों का चारित्र वल हैं। भव्य जोवों को अपवर्ग देने के लिए यह प्रावास स्थान है । निर्ममत्व अध्यात्म को बढ़ाने वाला है, क्रूर कर्म रूपी शत्रु का नाश करने वाला है, भव्य जीवों को मार्ग बतलाने वाला यह भूवलय है । अनेक वैभव को देने वाला सत्यवलय अर्थात् भूवलय है। अनेक महान उपसर्ग को दूर करने वाला भूवलय है, शुद्ध श्रात्मा के रूप को प्राप्त कर देने वाला आदिवलय है । अत्यन्त क्रूप कामादि को नाश करने वाला सुबलय है, चारित्र सार नामक यह मवलय है । अत्यन्त ज्ञान रूपी श्रमृत से भरा यह भूवलय है । हमेशा जागृतावस्था को उत्तम करने वाला भूवलय है। प्रत्यन्त सम्पूर्ण कठिन कर्मों का नाश करने वाला भूवलय है। संसार में अनेक प्राणी निर्भयता से परस्पर विरोध करते हुये दूसरे जीवों के प्रति अनेक प्रकार के कष्ट पहुंचाकर अन्त में क्रूर परिणाम के साथ भरकर कुगति में जाते हैं अर्थात् आपस में विरोध करते ये पापमय धर्म को अपना धर्म मानकर निर्दयता पूर्वक अनेक जीवों को घात