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________________ सिरि भुवलय सर्वार्थ सिद्धि संघ बैंगलोर-दिल्ली आठ गुणों में से एक गुण है। इसी तरह पागम में पाठ कमों को आपस में इसी तरह हजारों बल्बों के बटनों को दबाते जायें तो उन सबका भी प्रकाश गुणाकार करके निकालते समय नाम कर्म के अनेक भेदों में से एक अगुरु लघु उसी में शामिल होते हुए उसमें भिन्नता दिखाई नहीं देती है । तब इन हजारों नामक शब्द भी आता है वह नहीं समझना चाहिए । क्योंकि सिद्धों के आठ गुणों बल्बों का प्रकाश जैसे एक ही प्रकाश में समा गया ? सबसे पहले जो एक दीपक में जो अमुरुलधु शब्द पाया है उसे जागरुल घुत्व' कहते हैं इसलिए दोनों १ का अखंड प्रकाश था, उसमें जितने-जितने और प्रकाश पडते गये उतने-उतने भिन्न-भिन्न हैं। वह अगुरुलघुत्व गृरण कर्म से रहित है और जो अगुरुलघु है। पहले के दीपक सूक्ष्म रूप होते हुए प्रकाश गुण बढ़ता जाता है। जहां मूर्ति रूप वह कर्म से सहित है। पुद्गल में यह शक्ति देखने में पानी है, तो अमूर्त रूप सिद्धों में अन्य सिद्धों का सिद्ध भगवान प्रव्याबाध गुरण से युक्त हैं। सूक्ष्मत्व गुण के कारण समावेश होने में कौनसा आश्चर्य है ? अर्थात् नहीं है ।७३॥ अव्याबाध-- अवगाहगुरण का विवेचनजिस जगह में हम बैठे हैं उस जगह में दूसरे मनुष्य नहीं बैठ सकते है। एक क्षेत्र में अनेक पदार्थो का समावेश हो जाना अवगाहन शक्ति है। इतना ही नहीं किंतु हमारे पास भी नहीं बैठ सकते हैं, इसका कारण । जैसेकि ऊंटनी के दूध से भरे हुए घड़े में चीनी समा जातो है उसके बाद उसमें यह है कि उनके शरीर का पसीना हमको अपाय कारक होता है अर्थात् दोनों भरम भी समा जाती है। कोई किसी को रुकावट नहीं पहुंचाती, उसी प्रकार जनों का पसीना आपरा में विरोध रूप है । परन्तु सिद्ध भगवान के एक ही जगह जिन आकाश के प्रदेशों में एक प्रात्मा के प्रदेश हैं उन्हीं में अनन्त आत्माओं के में अनन्त मिद्ध भगवान होने पर भी हमारे शरीर धारी के समान उनको कोई १ प्रदेश भी समा जाते है और धर्म अधर्म आकाश काल और पुद्गल परमाणु मी बने भी बाधा नहीं होती है। श्री महावीर भगवान सर्व जघन्यावगाह के रहते हैं। इसी को अवगाहन गुण कहते हैं। इसी प्रकार इस भूवलय में जितने सिद्ध जीव हैं । उनके जीव प्रदेश में अनन्तानन्त सिद्ध जीव एक यात्रावगाह रूप प्रतिपाद्य विषय हैं उनके वाचक शब्द हैं और भिन्न-भिन्न अर्थ हैं, वे सब एक से हमेशा रहते हुए भी परस्पर बाधा रहित हैं ॥७२॥ मरे को न तो बाधा देते हैं और न विरुद्ध अर्थ कहते हैं, सब विषय परस्पर में सूक्ष्मत्व गुण--- एक दूसरे की सहायता करते हुए रहते हैं ॥७४॥ प्रत्येक सिद्ध जीव में सूदमस्व नामक एक गुण है। इस गुण से महान । जैसे सिद्ध भगवान में अनन्त ज्ञान रहता है, उसी प्रकार इस भूवलय गुणों से युक्त अनन्त जीवों में रहने वाले अनन्तानन्त गुणों के समूह को एक | ग्रन्थ में भी अनंत ज्ञान भरा हुआ है ।।७।। ही जीव ने अपने अन्दर समावेश कर लिया है इसी का नाम सूक्ष्मत्व है। जिस प्रकार सिद्धों में अनन्त दर्शन, सम्यक्त्व रहता है उसी प्रकार इस उदाहरणार्थ एक कमरा लीजिए उस कमरे को चारों ओर से बन्द भूवलय ग्रन्थ में सम्यक्त्व तथा अनंत दर्शन विद्यमान है शब्द रूप में अनंत बल करके उसके भीतर हजारौं विद्य त दीपक रखिये 1 पहले समय में एक बल्ब का सहित है ॥७६-७७।। बटन दबाया जाय तो एक दीपक जलता है तब उस दीपक का प्रकाश कमरे के वे सिद्ध अनागत सुख के धारक हैं |७|| आकाररूप फैल जाता है, अर्थात जिस समय उस बल्ब का प्रकाश फैल जाता है वे प्रतीत ज्ञान के धारक हैं॥७६।। उस समय उस कमरे के अन्दर रखी हुई कोई चीज बिना प्रकाश से बच नहीं शरीर रहित होने पर भी उनका प्राकार चरम शरीर से किंचित् ऊन है सकती, सभी पदार्थों पर प्रकाश पड़ता है। उसी समय अगर उसो कमरे । और आत्मघन प्रदेश रूप है ।।८।। के अन्दर दूसरा बटन दबाया जाय तो उतना ही प्रकाश उसमें ही समावेश वे शाश्वत और चित्स्वरूप हैं ॥१॥ हो जाता है और उसमें भिन्न प्रकाश मालूम न होकर एक रूप दीखता है।। वे हमेशा नित्य हैं ॥२॥
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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