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सिरि भूवलय
सर्वार्थ सिद्धि संघ, बैंगलोर-दिल्ली का मनगरिणतवत्बन्ध ॥६॥ प्रा महामहिमेयबंध Heil स्वामियतपद श्रीबन्ध ॥१०॥ सामन्तभदन बन्ध ।।१०।। श्री मन्तशिवकोटिबंध ॥१०॥ प्रा महिमन तप्तबंध ॥१०३।। कामितफलवीवबंध ॥१०४॥ नेमशिवाचार्य बंध ॥१०॥
स्वामि शिवायनबंध ॥१०६। नेमनिष्ठेयचक्र बंध ॥१०७॥ कामितबंध भूघलया १०८11 उत्तम संहननद चक्रबंध म। तुत्कृष्ट देहद रा* ग॥ चित्तजनन्दद संस्थान बंधदे ॥ सुतुवरिद दिव्यबंध ॥१६॥ वक रदसम्यग्दर्शनदादिय बंध । गुरु परम्परेय प्राचा * मल । वरतपबंधद सरमग्गी कोष्टक । विरुवअध्यात्मदबंध ॥११०॥ तके पिसुत देहवुउपसर्ग केड़ेयागे। अपरिमितानन्दनब * प्रा । सुपवित्रभावद सत्यवंभव बंध उपशमक्षयदादि बंध ॥११॥
* वपद्मबंधद कट्टिनोळकट्टिद । अवरसच्चारित्र य* बंध ॥ अवतारविल्लद अपुनरावृत्तिय । नवमांक बंध सुबंध ॥११२॥ ते रसगुरपठारगदोळगात्मनकूडि । सारधर्मवराशिमाडि ॥ बोर गु* एंगळअनन्ताकदो कट्टि । सारवागिसिह भूवलय ॥११३॥
शूरवागिसिद भूवलय ॥११४॥ नुसरनम्त भूयसय ११५॥ ' सारात्मरावास वलया ॥११६॥ धीररचारित्रयवलय १११७॥ दारियोळपवर्ग निलय ॥११॥ सेरुवघ्यात्म निर्ममव ॥११६।। क्रू र कर्मारिविलयद ॥१२शा दारिपतोर्वक निलय ॥१२०॥ भूरिवैभवदसद्वलय ॥१२२॥ घोरोपसर्गदविलय ॥१२३॥ सारात्म शिखयादिनिलय ॥१२४॥ क्रूरकार्मरणदेह विलय ॥१२॥ चारित्र सारसद्वलय ॥१२६॥ सारज्ञानाम ननिलय ॥१२७॥ दारकेयवरंकवलय ॥१२॥
घोर स्ववलिद भूघलय ॥१२६॥ करुणेय धर्म बद्ध नवागेलोकदे । बरुब कष्ट गळेल्लक र गि* ॥ गुरुविगेशिष्यने गुरुवागुवागल्लि । दोरेवसमाधियोळ् मोक्ष ॥१३०॥ तु नगेताने सिद्धियागुवकाल । जिन धर्मदतिशय वेळगि । घन वे दद्वादशदनुभवबेरलु । जिन बर्द्धमानन धर्म ॥१३॥ ता* रुण्यब होंदिमंगल प्राभृत । दारदंददेनवनम न* ॥ वेरतुवंदिह अध्यात्मवैभव । शूरमुनिगळदारिइह ॥१३२।। रो गशोकगळेल्लकरगुवयोगदे। सागर पल्यशलाके । यागुव म% हिमेय नवमांक बंधद । साघनकर्म सिद्धान्त ॥१३३।।
श्रीगुरुपदद सिद्धान्त ॥१३४॥ नागनरामरकान्य ॥१३॥ प्रागळिदयोग काव्य ॥१३६।। तागुवात्मध्यान काव्य ।।१३७॥ नागसंपगेपुष्पवैद्य ॥१३॥ भोगयोगदसिद्धि काव्य ॥१३६॥ भोगदतृप्तिय कळेव ॥१४०॥ श्रीगुरुशिवकोट्याचार्य ॥१४१॥ प्रामवाळिप शिवायनन ॥१४२॥ रोगवकेडिसिदकाव्य ॥१४३॥ नागमल्लिगेकृष्णपुष्प ॥१४४॥ तागलुस्वर्ण सिद्धान्त ॥१४॥ हेगेयुतप्पद योग ॥१४६।। नागार्जुन सिद्धकाव्य ॥१४७॥ प्रागिर्दकापुटांक ॥१४॥ श्रीगुरुयर सेनगरणदि ॥१९॥ रागदिपेळ्दसिद्धान्त ॥१५०॥ साधन वहस्वर्णकाव्य ॥१५॥
राम विराग भूवलय ॥१५२॥ अष्टमहाप्रातिहार्य वैभववनु । स्पष्टगोळिसिदादि वर हा ॥ इष्टार्थवेल्लात्म संपदावेन्नुव । अष्टमजिन सिद्धकाव्य ॥१५३॥