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________________ सिरि भूवलय सर्वाचं सिद्धि संघ बेगलोरविल्ती वो* तरागनु निरामयनु निर्मोहियु । कातरनिनितिल्लदिह ॥ ख्यात रो* योळु बाळुन भन्यरिगाश्रय । पूत पुण्यनु शुभ सौल्य ॥४॥ रो*ष तोषगळिल्ल लोध मोहळिल्ल । प्राशेयनंतानुबंध ॥ प* असरिसलेडेयिल्लदवननुभव काव्य। श्री शन सिद्ध भूवलय ॥४६॥ श्री शनाडिद दिव्य वाणि ॥४७॥ घासि अप्रत्याख्यान ॥४८॥ राशि कषाय मळळिगुम् ॥४६॥ मासुत प्रत्याख्यान ॥५०॥ रोषद सूक्ष्मसम्ज्वलन ॥५१॥ लेसिन जलरेखेयन्ते ॥५२॥ पाशाजलद संज्वलन ॥५३॥ लेसिनि भावदोळ मेरेये ॥५४॥ तासुतासिनोळगनन्त ॥५५॥ राशिकषायभेदगळ ॥५६॥ घासिय माडुतबहुदु ॥५७॥ लेसिन जलरेखेयन्ते ॥५॥ मासदें बन्दुसेरुवुदु ॥५६॥ प्रासेय भेदविज्ञान ॥६॥ राशिमाळपुदु तुषगळनु ॥६॥ माषदकाळिनन्तात्मा ॥६॥ श्री सनन्ददलि योगदोळु ॥६३॥ श्री सिद्धालयवे अल्लिहुदु ६४॥ आसिद्धालयद अनन्त ।७५॥ राशिय सिद्ध भूवलय ॥६६॥ इक बरोळगिरुव षड्द्रव्यगळेल्लव । हुदुगिसिकोन्डिह प र म ॥ पदप्राप्त जीयने पंचास्तिकायदे । अदु मत्ते एळु तत्वगळ ॥६॥ न* वपदार्थगळेम्ब अवसर वस्तुव । नवयवदोळ तुम्बि म रळि ॥ अवनेल्लबनोन्दकूडिसि तिळियुव । अवुगळ लेक्कवे जीव ॥६॥ द* रुशन जान चारित्रन नलगोतु । सरमाले बल्ल मुरु गु* ॥शरदनोम्वत्तेनु ऐदारु कूडलु बरुव दिप्पत्तेळरंक ॥६६॥ भू* वलय सिद्धान्त दिप्पत्तेछ । तावेल्लवनु होन्दिसि रु* व॥ श्री वीरवारिणयोकबह "ई" मंगल काव्य। ईविश्वयलोकदलि ७०॥ विश वगळग्रद तुत्ततुदियलि बेळगुव । शिवलोक सलुब मान व वर ।। धवल छत्राकार दगदगुरुलघु । सबियात्म गुणदोळगिहरु ॥७१॥ अवरव्यावाध गुरगरु ॥७२॥ नवनवोदित सूक्ष्म घनरु ॥७३॥ अवरवगाहदोळिहरु ॥७४॥ सवियनन्तद ज्ञानधररु ॥७॥ नव सम्यक्त्व दर्शनरु ॥७॥ अवरनन्तानन्त बलरु ॥७७॥ अवरनागत सुखधरर ॥७॥ अवरती तद ज्ञानधररु ॥७९॥ सविरुपिनशरीर घनरु ॥८॥ अवरुशाश्वतरुचिन्मया ॥१॥ अवरावागलु नित्यर् ॥२॥ अवरसुखवु बेकेन्देनुव ॥८॥ नवपद काव्य भूवलय ॥२४॥ विश्वदनके गमनवनिटु मा योगि । विश्वेश्वर सिद्धबर वे ॥दस्वरूपरध्यानिसुत भावदोलिप । विश्वज्ञ काव्यदनवियु ॥ ५॥ प* रमामृतकान्य अरहन्त भाषित । गुरु परम्परे यादि पर दद ॥ गुरु सिद्धपदप्राप्तियागबेकेम्बर्गे। सरसविद्यागम काव्य ॥५६॥ पद्धतियोळु चकबंध हंसबंध । शुद्धाक्षरांक र* क्षेयनु । होद्दिद अपुनरुक्ताक्षर पद्मद । शुद्धद नवमांक बंध ॥७॥ वर र पद्म महापद्म द्वीप सागर बंध । परम पलयद प्र म बु बंध ॥ सरस सलाके शेरिणय अंकदबंध । सरियागेलोकवबंध ॥८॥ रोमकूपद बंध क्रौंच मयूरद । सीमातीतद बन्ध ।। कामन पर दपद्म नख चक्रबंधद । सौमातीतद लेषक बन्ध का ने मवकिरणदबंध 1tor स्वामिय नियमनबन्ध ॥६ हेमरत्नद पद्मबन्ध ॥२॥ हेमसिंहासन बन्ध ॥६॥ ने मनिष्टेय व्रतबन्ध | प्रेमरोषय गेल्दबन्ध ॥६५॥ श्री महावीर नबन्ध ॥६६ ई महियतिशयबंध ॥१७॥
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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