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________________ चौथा अध्याय ॥३॥ इक ष्टोपदेशव नष्ट कर्माशव । स्पष्टदे अरहंतर श* री॥ अष्टगुणान्वित सिद्धर स्मरिसिद । अष्टमजिन सिद्ध काव्य ॥१॥ यत शश्वतिदेविय करविडिदादि । दृपजिनेशन काव्य ।। प्रश रो* र सिद्धत्व वड? बाळुव काव्य । ऋषिवंशदादि भूवलय ॥२॥ मूॐ हवेळेयोळ सामायिकर्देनिलव । वोरजिनेन्द्रदारियद ॥ सेरि प द्धतियतिशयदनुभव । सारभव्यर दिव्य काव्य ल* क्षरणयरियुत स्वसमयवव सारि । अक्षरदंकदोब्बे र सि* ॥ शिक्षेयोलदिद्रिय मत्तु मनवतु । लक्षणदिस्तब्धगोलिसि ॥४॥ तर नुवनु मरेयुत जिनरूपे नानॅब । घनविद्य यनुभववागे ॥ म नबेसिम्हासनवागिरलमलात्म । जिननंते कमलदासनदि ॥५॥ धनवैभवदिद कुलितु ॥६॥ जिननंते कायोत्सर्गदलि ॥७ अनुदिनदभ्यासबलदि ॥८॥ दिनदिनयोगहेच्चुतिरे ६ इननंततपिन ज्योति ॥१०॥ धनवागि बेळगुतलिरलु ॥११॥ तनगेताने ब्रह्मनेनुव ॥१२॥ जिन धर्मदनुभव बरलु ॥१३॥ ऋषद देहब मरेतिहरु ॥१४॥ एरिणकेगे बारध्यात्म ॥१५॥ धनप्रतिक्रमण तानागे ॥१६॥ चिनुमय मुद्रेयंदोदगे ॥१७॥ घनरत्न मूरर बेळकु ॥१८॥ तनगेताने बंदु बेळगे ॥१६॥ मनुमथनुपटल करगे ॥२०॥ जिननाथनोरेच भूवलय ॥२१॥ तनुविनोळात्म भयलय ॥२२॥ वेनुर्तितु निलुव कुळिरुव ॥२३॥ तनुवदे स्वसमय सार ॥२४॥ न प्रवदकरते स्वयम् परिपूर्णद । अवयवबद शुद्ध गुर राव ॥ अवतार स्थानव हदिनाल्करत्नद । चिनुमय सिद्ध सिद्धांत ॥२५॥ तर नुवनु परवेंदरियुत प्रापर । दनुरागवनु तोरेदाग ।। जिन र* सिद्धर रूपिननुभव हेच्चुत । तनु रूपिनंतात्म रूपु ॥२६॥ क* रसुवुदास्रव बरुव बंधवदिल्ल । निराकुलतेय पद्म वे ळु ।। सरमालेयंते तन्नेदेयलिकारणबाग । अाहनपदबंग गुरिणत ॥२७॥ * रतरवाद अद्भुतपरिणामद । सरस संपदवेल्न अव न* ॥ हरुषवनेरिप समयद लधियु । बरुबागमा अंतरात्म ॥२॥ वरुवाग अवनतंरात्म ॥२॥ परिणाम लधियागुवदु ॥३०॥ बरलरहंत तानेनुब ॥३॥ वरुषवर्द्धनकादि एनुव ॥३२॥ बरे बरुवाग तन्नात्म ॥३३॥ गुरुवावे जगकेएंधेनुव ॥३४॥ अरहंतरतु कंडेनेनुव ॥३५॥ परिशुद्ध नाने एंदेनुव ॥३६॥ परमात्म पदवडनुव ॥३७॥ गुरुपद दोरेयितदनुव ॥३८॥ सिरियायतुज्ञान देनुव ॥३६॥ परममंगलनाल्कु एनुव ॥४०॥ परमात्म चरण भूवलय ॥४१॥ तानु तन्नंद पडेव कार्यदोलिपं । आनन्द शाश्वत सुख म* ॥ तानु तन्निदले तनगागि पोंदुव । तानल्लदन्यरिगरिया ॥४२॥ सिवनद शाश्वत निर्मल नित्यनु । भववनेल्लव केडिसुव् ह ॥अविरल सुखसिद्धियवने महादेव । अवनादि मंगल भद्र। ॥४३॥ रिडियाशेय होद्धदिरुव चिन्मयनु । शुद्धत्ववेल्लमह * री॥बुद्धितियाचार्य पाठक साघुयु । शुद्ध सम्यक्त्वदसारा ॥ ४॥
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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