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________________ सिरि भूवलय सर्वाचं सिद्धि संघ बंगलोर-दिल्ली इसी के अन्तर्गत यह निम्न लिखित मंगलाचरण का इलोक निकलता इस अध्याय के अन्तर्गत प्राकृत भगवद्गीता है उसको यहां उथत । करते हैं। आगाह अन्तहि गुणहि जुतो विशुद्धमारतों। भवभयदजणदच्छो महवीरो अत्थकतारों। अर्थ-पा (णा) गोहि यान ज्ञानादिी अनन्त गुणों से युक्त विशुद्ध चारित्र! काले भव भय का नाश करने वाले भगवान महावीर ही इस ग्रन्थ के अर्थ कर्ता प्रज्ञानतिमिरान्धानां ज्ञानाञ्जनशलाकया । चक्षुरुन्मीलितं एन तस्मै श्री गुरु वेन्नमः । इस श्लोक में पाये हुये एन' के स्थान पर संस्कृत भाषा की दृष्टि से 'येन' होना चाहिये परन्तु चित्र काव्य और श्लेषाल कार में एक तथा ये को एक हो मान लिया जाता है । इसी प्रकार गुरुवेन नमः के बारे में भी समभलेना।
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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