SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिरि भूवलय सर्वार्थ सिद्धि संघ वेगलोर-दिल्ली योगियों का गुण गान करने वाला यह भूवलय है। परद्रव्य के दर्शन करने से । आये हुए जीवों की रक्षा करता है सभी जीवों को हर्ष उत्पन्न करने वाला यह जिस कर्म का बंध होता है वह कर्म सम्यक्त्व को शुद्ध नहीं करता है जैसा मर-1 वाक्य है। यह वाक्य सम्पूर्ण भरत खंड की सम्पत्ति है ॥१४६!! हत, प्राचार्यादि, गुरुयों ने समझाया है। परम स्वरूपाचरण में परमोत्कृष्ट सम्यग्ज्ञान की निधि है ।।१४७।। रहने वाले प्रात्मा को संसार से निकाल कर सम्यक्त्व चारित्र में रहने के सुलभ साहित्य का गणित है ।।१४८॥ कारण मन की ओर अरहंत और सिद्धों को लाकर स्थिर करने से सिद्ध पद परम उत्कृष्ट ज्ञान को ७१८ भाग में विभाजित किया गया है ।।१४६॥ प्राप्त होता है । ऐसा अरहंत परमेष्ठियों ने कहा है । अर्थात् कानड़ी काव्य का । उन अनेक प्रकार की विधियों को भाषाओं के नामसे अंकित किया है १ छन्द सांगत्य २ चरित्र में ही गभित है ऐसा भी इसका अर्थ होता है। वे सभी इस भूवलय में हैं ॥१५॥ जिन जिन भावों में जो असाध्य है, इस बात को वृषभ ! इसलिये अरहंत देव ने ही इस भूवलय का कथन किया हे ॥१५क्षा सेन आदि प्राचार्यों ने साध्य कहा है भव्य जीवों को प्राचार विचार चारित्रादि में इस श्री महावीर की सर्वांग सुन्दर दिव्य ध्वनि को शूर दिगम्बर मुनियों ने स्थित करने वाले अन्य भागम में किसी प्रकार उघृत नहीं किया है ।।१३शा मार्ग में बिहार करते समय अध्यात्म रूप में लिखा तद्रूप यह भूवलय ग्रन्थ हैं।।१५२।। सभी माचार्यों ने परम्परा परिपाटी के अनुसार मंगल तथा सुख मय । इस काव्य को पढ़ने से सम्पूर्ण कषाय नष्ट हो जाती है। शेष को नष्ट निराकुलतायें सराहनीय धर्म को अंकाक्षर मिश्र रूप से उत्पन्न होने वाली वाणी । कर सिद्ध पद को प्राप्त करता है। इस लिए भव्य भावक (जीवों) मनुष्य के की परम्परा पद्धति के अनुसार ही भगवान महावीर की वाणी से लिया है, . द्वारा इसकी आराधना करते हुए गुणाकार रूपी काव्य है ॥१५३] इसलिये यह वाणी यथार्थ रूप है ॥१३६॥ इस भूवलय ग्रन्थ में साठ हजार प्रश्न है । इन प्रश्नों उत्तर को देते समय __ यह निराकुल अर्थात् प्राकुलता रहित मार्ग मंगल रूप होने के कारण संतोष प्रत्येक प्रश्न पर दृष्टान्त पूर्वक विवेचन है। इस ग्रन्थ को चौदह पूर्व तथा की वृद्धि करने वाला है। और परम अर्थात् उत्कृष्ट करुणामय गणित से । उस से प्रकट हुई वस्तु भी कहते हैं। जिन्होंने प्रष्ट कर्मों को नष्ट किया है ऐसे निकल आता है, इसलिए इसका दूसरा नाम दयामय धर्म भी है ॥१३७।। भगवान ने कहा है । अतः इस भूवलय ग्रन्थ में अष्ट मंगल द्रव्य हैं ॥१५४।। यह धर्म परहंत भगवान के मुख कमल से प्रकट हुआ है ॥१३८।। जिनेन्द्र देव की भक्ति करते समय मन वचन काय को कृत कारित अनुसंख्यात अंकों से भी गुणा कर सकते है ॥१३॥ मोदना इन तीनों से गुणा करने से नौ गुणनफल आता है। फिर इन अंकों को उत्कृष्ट प्रौषध ऋद्धि गणित को यह बतलाने वाला है ।।१४०॥ अरहन्त सिद्धादि नौ पदों से गुणा करने से ८१ (इक्यासी) संख्या हो जाती है। आठ प्रकारों की बुद्धि ऋद्धि को सुलभ अंकों से बतलाने वाला है ॥१४॥ इस प्रकार गणना करने वाले 'गणक' ऐसा कहते हैं । उन गणकों के अनुभव में भित्र भिन्न अनेक अतिशय युक्त सिद्धि को प्राप्त करा देने वाला है।।१४२॥ ३ घाया हुआ यह भूवलय ग्रन्थ है ॥१५॥ भव्य जीवों का उपकार करने के लिए प्राचार्यों ने लिखा है ॥१४३॥ । इस भूवलय में चौसठ कलायें है। यह सब चौसठ कलाऐं नौ अंक संसार सागर में अनेक बार भ्रमण करते करते प्रत्यंत मय भीत होते 1 में ही अन्तर्गत हैं। यह नौ अंक समस्त जीवों के चारित्र को शुद्ध करते हुए
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy