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देन्दु के द्वारा उल्लेखित सभी कविजन छठी शताब्दी से पूर्ववर्ती हैं। कुमुदेन्दु के समकालीन व्यक्तियों में से एक वीरसेनाचार्य दूसरे जिनसेनाचार्य, वीरसेनाचार्य के द्वारा षट् खण्डागम की धवला टीका बनाई गई है। और जिनसेन महा पुराण के कर्ता है। उन्होंने अपनो जयधवला टीका शक सं० ७५६ में बना कर समाप्त की है और महा पुराण भी लगभग उसी समय वे मधूरा छोड़कर स्वर्गवासी हुए हैं जिसे उनके शिष्य गुणभद्र ने पूरा किया या अतः बाद में उस समय उनके शिष्य कुमुदेन्दु मौजूद थे ऐसा अनुमान किया जाता है।
१३ – कुमुदेन्दु प्राचार्य ने राष्ट्र कूट राजा अमोघ वर्ष को अपना यह ग्रंथ सुनाया था ऐसा कहा जाता है। मान्यखेट के प्रमोघ वर्ष का समय इस से निश्चित रूप में कहा जा सकता है। कुमुदेन्दु आचार्य ने अपने ग्रन्थ में अमोघ वर्ष के नाम का कई बार उल्लेख किया है। जैसे कि
भारतदेशद मोघवर्धन राज्य । सारस्वतबंबंग १८ १२६ ।
तनल्लि मान्यखेटददोरेजिनभक्त । तानुप्रमोघवर्षांक ६.१४६ । सिहियखं उदकर्नाटकचक्रिय । महिमेमंडल भेज्ञरांतु १६-१७२। गुरुविन चरणधूळिय होमोघांक । दोरेयराज्य 'ऴ्' भूवलय ॥ जानरमोघवर्षांकनसभेयोळु । क्षोणिशसर्वज्ञभर्तादि ॥ इह ये स्वर्गवीएवंतेरदिम् । ६१७६ | दहिसि अमोघवर्षनृप || ऋषिगळेल्लरुएरगुते रविर्दाळ । ऋषिरूपधर कुमुदेन्दु ॥ हसनादमनदिदमोघवर्षांकगे । हेसरिट्टुपेळ द श्री गीतं । ४५ । ऊनविल्लद काव्यदक्षरांक काव्य करणिपर्वकु ंठ काव्य ॥ ४६ ॥ ऊनविल्लद श्री कुरुवंशहरिवंश | आनंदमय वंशगळलि । तानेतानागि भारतवादराज्यद । श्रीनिवासन दिव्य काव्य । सिरि भूवलयम्नाम सिद्धांतनु । बोरे प्रमोध वर्षांक नृपम् । ईयुत कर्माट जनपदरेल्लर्गे । श्रेयोमपिलधर्मम । १६-२४, ५ इस प्रकार अमोध वर्षका अनेक प्रकार से सम्बोधन करते हुए जो उद्धईस्वी सन् ८१४ से ८७७ तक उसने संदेह नहीं है। इनके गुरु का समय
र दिये गये हैं। अमोघ वर्ष का समय राज्य किया है, इसमें किसी प्रकार का
ईस्वी सन् की ८ वीं शताब्दी होना चाहिये ऐसा अनुमान किया जाता है । कुमुदेन्दु श्राचार्य ने गंग रस और उनके शंका कास्मरण किया है। और गोट्टिक नामक शैवट्ट शिवमार्ग के नामका उल्लेख भी किया गया है जैसे किमहदादिगांगेयपूज्य | ५६ | महियगन्गरसगरिंगत १६६ | महिय काप्पुकोवळला । ७१ । मवरितलेकाच गंग ॥ ७२ ॥ अरसराळिदगंगवंश | १२| त् रसोत्तिगेयवर मंत्र ॥१३॥ एरडुबरेय द्विपबंद | १४| गरुन गोट्टिगरेलुरंद ११५| अरसुगळाळ् वकळ्व पु | २० | बंगबनुभव काव्य 1२३| श्रादि योळ मत्त वदसेनर । नादिय गंगर राज्य । सादि अनादिगळ भय साधिप । गोदम निम्बंव वेव । २३ ।
इन समुल्लेखों से यह स्पष्ट है कि आचार्य कुमुदेन्दु ने जो श्रमोष
वर्ष का 'शैवह' शिवमार्ग' नाम से उल्लेखित किया है वे उनके प्रारम्भिक नाम ज्ञात होते हैं । “शिवमार देवम् संगोट्टनेबेरडेनये पेसरमुताल्दिः, शिवमार मत तथा गजशास्त्र की रचना कर और पुनः एनेलवदो शिवमारम । हो वलया-' fare सुभग कविता गुणमय' ।। भूवलय दोल" गजाष्टक | योगवनिगेयु "मोने के बाडु” मादुदे पेलगुम् ।
इस तरह पर कानडी गद्य में मजाष्टक नाम के काव्य की रचना की
है ।
यह शैव वट्टिग शुभ कविता बनाने में प्रवीण थे भूवलय में गजाष्टक वसिके वास इत्यादि काव्य कूटने और पीसने के विषय में कविता कर्नाटक भाषा में चत्तान्न वेदन्न' ऐसे दो प्रकार के पुराने पद्य पद्धति में पाये जाते हैं। जो कि पुरातन काव्य की रचना शैली को व्यक्त करते हैं। जहां तक प्रमोषवर्ष के काव्य का सम्बंध है, उसमें उल्लिखित उक्तदोनों काव्य हैं। उनको इन्होंने निश्चय से उपयोग किया है।
शिवमार्ग बट्टि ने दक्षिण कर्नाटक का राज्य ईस्वी सन् ८०० से ८२० तक किया हैं। इसके पश्चात् गंगरस राजा नंदगिरि ने ( लाल पुराधीश्वर ) (राजा) शासन किया है। इतना ही नहीं, किन्तु इसके अलावा इस भूवलय में
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