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इहके नंदियु लोक पुज्य ॥५-५५।। महति महावीर नन्दि ।५।। भाषानों को समाविष्ट कर वस्तु तत्व दिखलाने का काव्य कोशल नहीं है। इहलोकदादियगिरिय । ६-५६। सुहुमानन्द गरिएतदबेटा।
श्री कुमुदेन्दु के विनीत शिष्य राजा अमोघ वर्ष ने अपने 'कविराज मार्ग' महसीदुमहावत भरत ।६१॥ वहिवनुव्रत नन्दि ।७२।
में कवियों के नामों का जो उल्लेख किया है वह इस प्रकार है:राहतेश गुपगट नेट्न १३' सहबर मूरारमा १७४।
विमलोवय नागर्जुन ! समेत जय घंधुदुविनीतानिगळी ॥ ___ इसका गंगराज के संस्थापक सिंह नर्नद मुनीन्द्र के द्वारा शक सं०१६
करमरोचिगद्या । श्रम पद गुरु प्रतीतियंके योन्जर ।। ईस्वी सन् [७८] में निर्माण हुमा था। पहली राजधानी इनकी नंदिगिरि
विमल, उदय, नागार्जुन, जयवंधु, दुविनीति कवियों में से नागार्जुन होनी चाहिए। हम ऐसा निश्चयत: कह सकते हैं कि प्रस्तुत कुमुदेन्दु उन्हीं ।
द्विारा रचित कक्षपुट तंत्र को समझा फिर नागार्जुन का 'कक्ष पुट तंत्र' जो पहले सिंहनंदि वंश के हैं। इन्हीं की परम्परा का एक मठ सिंहणगद्य में है जहां
| कानडी भाषा में था वह बाद में संस्कृत में परिवर्तन कर दिया गया इस तरह
इस उल्लेख से अनुमान किया जाता है कि यह दुविनीत के शासन समय का जहां सेनगण है वहाँ वहाँ सब इन्हींके धर्म का क्षेत्र है। इस प्रकार संपूर्ण । विषय का विचार करके दिये गए वर्णन को; जो कि देबप्पा ने दिया है, ठीक।
साहित्य हो उपलब्ध है। विमल जयबंधु का काव्य हमें उपलब्ध नहीं हुआ है
तो भी नृपतुग अमोघवर्ष के ग्रन्थ में आने वाले कर्नाटक गद्य कवि प्रिया पट्टन प्रतीत होता है।
के देवप्पा द्वारा कहे जाने वाले कुमुदेन्दु के पिता उदयचन्द्र का नाम ही 'उदय' भूवलय काव्य को देवप्पा ने विशेष रोति से समझ कर जनता के प्रति
हे ऐसा कहने में किसी प्रकार को आपत्ति नहीं है। और इस भूवलय ग्रन्थ में जो उपकार किया है वह उपकार विश्व का दसवा धारचय है। इस भूवलय। आनेवाले पूज्यवाद प्राचार्य ने कल्याण कारक ग्रन्थ को बनाया ऐसा स्पष्ट काव्य को, जो विश्व की समस्त भाषाओं को लिये हुए है। उनको रचना कर
पाया का लिय हुए है। उनकी रचना कर होता है। क्योंकि कुमुदेन्दु से जो पूर्ववर्ती कवि थे उनका समय सन् ६०० से उन्होंने अपने पिता को लोक में महान गौरव प्रदान किया है। इससे सिद्ध
सिद्ध बाद का नहीं है। इस ग्रंथ से हमने जो कुछ समझा है वह प्रायः अस्पष्ट है, होता है कि कुमुदेन्दु के पिता वासु पूज्य और उनके पिता उदयचन्द थे।
पूरा ग्रन्थ हमें देखने को नहीं मिला है। किन्तु हमने जो कुछ देखा है उससे कुमुदेन्दु के समय का परिचय कराने के लिये अभी तक हमें जितने भी। यह भलो भाँत्ति विदित है कि कुमुदेन्दु प्राचार्य के लिखे अनुसार दाल्मीकि साधन प्राप्त हुए हैं उनके आधार पर हम कह सकते हैं कि ग्रन्थ कर्ता । नाम के एक संस्कृत कवि हो गए हैं। [कदि' बाल्मीकि रस दूत अणि सूबा'] के द्वारा उल्लिखित पूर्व पुरुषों के नामों का उल्लेख और उनका संक्षिप्त परि- । इस प्रकार कुमुदेन्दु प्राचार्य ने अपने भूवलय ग्रंथ में शुद्ध रामायण अंक के चय, तथा समकालीन व्यक्तियों के नाम, समकालीन राजाओं का परिचय, कर्ता बाल्मीकि ऋषि के नामका उल्लेख किया है । परन्तु इनके विषय में अभी श्री कुमुदेन्दु का समय निर्धारण में सहायता करते हैं।
1 तक कुछ निर्णय नहीं हो सका है। कोई कहता है कि वह छठी शताब्दी के श्री कुमुदेन्दु से पूर्व होने वाले प्राचार्य धरसेन, भूतबलो पुष्पदन्त, नाग-है कोई कहता है कि उसके बाद के हैं। इस तरह उनके समय सम्बन्ध का हस्ति, पार्थ मा और कुदकुदादि, एवं अन्य रीति से उल्लिखित शिवकोटि, ठीक निर्णय नहीं हो सका है कि वे कब हुए हैं। शिवायन, शिवाचार्य, पूज्यपाद, नागार्जुन ये सब विद्वान पारवी शताब्दी से अमोघ वर्ष की सभा में वाद विवाद करके शिव-पार्वती गरिएत को कह पूर्ववर्ती हैं। उनकी परम्परा के ग्रन्थ न मिलने पर भी संस्कृत प्राकृत और कर चरक पैच के हिसात्मक प्रायुर्वेद का खण्डन किया। इस तरह कुमुदेन्दु कर्नाटक भाषा में लिखा हुआ विपुल साहित्य, तथा विश्वसेन भूतबली पुष्प- प्राचार्य के द्वारा कहा गया उक्त उल्लेख अभी तक अस्पष्ट है। प्राचार्य दन्तादि की रचनाएं विद्यमान हैं। पर उनमें कुमुदेन्यु के काव्य समान समस्त । समन्तभद्र का उल्लेख भी अभी विचारणीय है। इस कथन से स्पष्ट है कि कुमु