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________________ ४२ सिरि भूवलय साथ सिद्धि मग नगलोर-सिली 'प्रादौ सकारप्रयोगः सुखदः' के अनुसार सिद्ध भगवान आदि अक्षर मोहनीय कर्म के समूल क्षय से आत्मा को अनुपम अनुभूति कराने वाला वाले हैं ।। ११॥ सम्यक्त्व गुण है ॥३॥ वे अन्न आदि अन्य पदार्थों की सहायता से जीवन व्यतीत नहीं करते अनन्त पदार्थों को निरन्तर अनन्त काल तक युगपत् जानते हुए मी अतः स्वतन्त्र-जीवी हैं ॥११॥ । प्रात्मा में निर्बलता न आने देकर अनन्त शक्तिशाली रखने वाला वीर्य गुण है। वे अत्यन्त रुचिकर सर्वस्वरूप सुख के सार का अनुभव करते हैं॥११६॥ जो कि अन्तराय कर्म के क्षय से प्रगट होता है ॥४11 वे सिद्ध भगवान अवतार (पुनर्जन्म) रहित होकर अपना सुखमय जीवन उक्त चारों गुण अनुजीवो गुण हैं । व्यतीत करते हैं ॥११७॥ वेदनीय कर्म नष्ट हो जाने से प्रात्मा में प्राकुलता-वाधा आदि काम वे अनन्त वीर्य वाले हैं ॥११५|| रहना अव्याबाध गुण है 11॥ दे अनन्त सुखमय है ।।११।। आयु कर्म सर्वथा न रहने से शरीर की अवगाहना (निवास) में न रह वे गुरुता लघुता-रहित अत्यन्त रुचिकर अग्ररुलघु गुणवाले हैं ॥१२॥ कर स्वयं अपने प्रात्म-प्रदेशों में निवास रूप अवगाहनत्व गुण है ॥६॥ उन्होंने नवीन सूक्ष्मत्व गुण को प्राप्त किया है ।।१२।। नाम कर्म द्वारा पौद्गलिक शरीर के साथ संसारी दशा में प्रात्मा सतत दे महान कवियों की कविता द्वारा प्रशंसा के भी अगोचर हैं ॥१२॥ स्थूल रूप बना रहता है। नाम कर्म नष्ट होने से प्रात्मा में उसका सूक्ष्मत्व गुण वे इ.व्यावाध गुरण वाले हैं ।।१२३॥ प्रगट होता है ।।७।। वे समस्त संसारी जीवों द्वारा इच्छित महान पात्मनिधि के स्वामी गोत्र कर्म प्रात्मा को संसार में कभी उच्च-कुली, कभी नीच-कुली हैं ।।१२४॥ बनाया करता है । गोत्र कर्म नष्ट हो जाने पर सिद्धों में गुरुता (उच्यता), वे ही अर्हन्त भगवान के तत्व (रहस्य) को अच्छी तरह जानने वाले । लघुता (नीचता) रहित अगुरुलघु गुण प्रगट होता है ॥८॥ अन्तिम चारों गुण प्रतिजीवी गुण हैं । ये ४ अनुजीवी तथा ४ प्रतिउन्होंने समस्त विशाल जगत को अपने ज्ञान दर्शन द्वारा देखा है ।।१२६॥ जीबी गुण सिद्धों में पाए जाते हैं। इस कारण में उनके चरणों को नमस्कार करता हूँ ।।१२७।। अर्हन्त भगवानक्योंकि उन्होंने (सिद्धों ने) समस्त संसार-भ्रमण का नाश कर दिया व्यास पीठ में उल्लिखित अर्हन्त, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय, सर्व साधु, है ।१२८॥ जिन वाणी, जिन धर्म, जिन चैत्य, जिन चैत्यालय; ६ स्थानों का सूचक अंक विवेचन-सिद्ध परमेष्ठी में वैसे तो अनन्त, पूर्ण विकसित. शुद्ध गुण क्या है केवल लब्धियों के अधिपति अर्हन्त भगवान को सूचित करता है ? हां वे होते हैं किन्तु ८ कर्मों के नष्ट होने से उनके ८ विशेष गुण माने गये हैं। । ही अर्हन्त भगवान इष्ट देव हैं ।।१२।। ज्ञानावरण कर्म के नष्ट होने से लोक अलोक के त्रिकालदर्ती समस्त विवेचन-विशेष आध्यात्मिक निधि के प्राप्त होने को 'लब्धि' कहते हैं। पदार्थों को उनकी समस्त पर्यायों सहित एक साथ जानने वाला अनन्त ज्ञान । अर्हन्त भगवान को चार घाति कर्म नाश करने के अनन्तर । लब्धियां प्राप्त होता है ।।१।। होती हैं। (१) केवल ज्ञान, (२) केवल दर्शन, (३) क्षायिक सम्यक्त्व, (४) ___ दर्शनावरण कर्म के समूल नाश हो जाने से समस्त पदार्थो की सत्ता क्षायिक चारित्र, (५) क्षायिक दान, (६) क्षायिक लाम, (७) क्षायिक मोग का प्रतिभासक दर्शन मुरण है ।। २॥ (5) क्षायिक उपभोग, (8) क्षायिक वीर्य (अनन्त वीर्य) ये नौ सब्धियां हैं।
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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