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सिरि भूवलय
सर्वार्थ सिद्धि संघ बैंगलोर दिल को
अन्तर श्लोक
श्लोक इसी प्रकार सारतर आत्म-स्वरूप को बतलाने वाला भूवलय है ।।७।। जिस प्रकार सिद्धरसायन द्वारा कालायस (काला लोहा) भी सुवर्ण धौर वीर मुनियों के आचरण का प्रतिपादक यह भूवलय है ।८०॥ बन जाता है, उसी प्रकार पतित संसारी जीव को देह से भेद-विज्ञान उत्पन्न सरल मार्ग को बतलाने वाला भूवलय है ॥१॥
करके मुक्ति प्रदान करने वाला भूवलय है ।।१०।। श्री कुमुदेन्दु प्राचार्य ने मार्ग में चलते हुए अपने शिष्यों को जो पढ़ाया घातिकर्म नष्ट करके जीवराशि में जीवनमुक्त ईश्वर (महन्त) होकर वह यह भूवलय सिद्धान्त है।शा
भव्य जीवों की रक्षा करता हुआ धर्म तीर्थ द्वारा उनका कल्याण करके वह यह भूवलय शूर वीर मुनियों का काव्य है !
सोर के नाम-भाग में विराजमान सिद्धराशि में सम्मिलित हो जाता रलहार में जड़े हुए मुख्य रत्न के समान भूवलय ग्रन्थ-रत्नों में प्रमुख ह॥१०॥ है।1८४॥
जब यह आत्मा सांसारिक व्यथा से पृथक हो जाता है तब मुक्ति स्थान मात्मा को निर्मल ज्योति-रूप भूवलय है ।
में प्रात्मा के आदि अनुभव को अनन्तकाल तक अनुभव करता है ।।१०।। अत्यन्त सरलता से सिद्धान्त का प्रतिदिन करने वाला भूवलय
अनादिकाल से संलग्न कोष काम लोभ मायादिक को जव यह आत्मा प्रन्थ है ॥८६॥
नष्ट कर देता है, तब वह प्रात्मा सिद्धालय में अपने पापको जानता देखता क्रू र कर्मों का प्रजेय शत्रु भूवलय ग्रन्थ है ॥२७॥
हुआ समस्त पदार्थों को जानता देखता है । समस्त सिद्ध निराकुल होकर प्रानन्द शूर वीर ज्ञानी ऋषियों के मुख से प्रगट हा यह भूवलय है ।।६।।
से रहते हैं ॥१०॥ आत्मा की सार ज्योति-स्वरूप यह भूवलय है ।।६।।
1 णमोकार मंत्र में प्रतिपादित पांच परमे ठो प्रात्मा के पांच अंग स्वरूप सरलता से आत्मतत्व को बतलाने वाला भूवलय है ॥१०॥
हैं। जब यह आत्मा सिद्ध हो जाता है तब वह भेद-भावना मिट जाती है और जिस प्रकार रत्नों में मारिणक श्रेष्ठ होता है उसी प्रकार शास्त्रों में सभी सिद्ध एक समान होते हैं ।।१०४॥
अन्तर श्लोक श्रेष्ठ शास्त्र यह भूवलय है ॥६॥
मक के समान सिद्ध भगवान परिपूर्ण है ॥१०॥ श्री वीर जिनेन्द्र द्वारा प्रतिपादित यह भूबलय है ॥१२॥
सिद्धों के रहने का स्थान ही भूवलय है ॥१०६।। श्री वोर भगवान की दिव्यबारणो स्वरूप यह भूवलय है ।।३।।
णमोकार मंत्र की सिद्धि को पाये हए सिद्ध भगवान हैं ॥१०॥ श्री महाबीर महादेव के प्रभा-वलय के समान वह भूवलय है ॥१४॥
सिद्ध भगवान अनन्त प्रकों से बद्ध हैं यानी संख्या में अनन्त हैं ।।१०।। विशाल यात्मवैभवशाली यह भूवलय है।
वे अनन्तज्ञानी हैं ॥१०॥ अनन्त पाचार की वृद्धि करने वाला यह भूवलय है ॥१६॥
वे तीन कम करोड मुनियों के गुरु हैं ॥११०॥ इस प्रकार प्रति उत्कृष्ट प्राचार को प्रतिपादन करने वाले प्राचार्य
वे निर्मल ज्ञान शरीर-चारी हैं 11१११॥ के समान यह भूवलय है ।।६७||
वे भौतिक शरीर के अवयवों से रहित हैं किन्तु प्रात्म-अवयव (प्रदेशों) अत्यन्त वैभवशाली वैराग्य को उत्पन्न करने वाला यह भूवलय है। बाले हैं ॥११२॥ भव्य जीवों के हृदय में भक्ति उत्पन्न करने वाला भूवलय है ||
परिपूर्ण अंक समान परिपूर्ण दर्शन बाले वे सिद्ध भगवान हैं ॥११॥