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सिरि मुचतय
सर्वार्थ सिद्धि मंत्र बेंगलोर - दिल्ली
अनुलोम क्रन्म जैसे ऊपर १२३४४४५४६ ऐसे क्रम ५४ तक | नामक माला रूप में इसकी रचना हुई है। अब आगे आने वाले अनुलोम क्रम लिखा जाए तो शब्द राशि की उत्पत्ति प्राती है जितने बार की प्रतिलोम की से आने वाले द्रव्यगम है ऐसे जानना चाहिए। संख्या है उतने बार की अनुलोम क्रम संख्या के भाग देने से उतना ही शून्य आजावेगा अब प्रतिलोम क्रम ११ और अनुलोम क्रम पद तक हम आए हैं। अब प्रतिलोम क्रम ६४ से लेकर १ तक आएं अनुलोम क्रम १ से लेकर ६४ तक रहे तो २ अंक हो जाता है वह फिर बताया जावेगा ।
अनुलोम क्रम ७२ अंक का आता है ८४ प्रतिलोम ८४ अंक को अनुलोम ६१ अंक से भाग करने से पूरणा आने के लिए जो कोष्ठक बतलाया गया है उस रीति से कर लेना । अर्थात् अनुलोम ७१ अंक को २ से गुणा करे तो जो अक आता है उसको भागना इसी सत्र से ३-४-५-६-७-८-8 तक कर लेना तब भाग देते थाना जब भाग देते भावें तो ऊपर से नीचे जिस संख्या से भाग होता है उस संख्या को आड़ा पद्धति से लिख लें जो अंक आता है उसको लब्धांक कहते हैं । उसको आधा करें तो सारी शब्द राशि हो जातो हैं। अवधि ज्ञान सम्पन्न महा मुनि और देव देवियां और कुमति ज्ञान वाले नारको जीव के लिए इतना ज्ञान है। आजल्ल सीमंधर भगवान् के समोशरण में रहने वाले ऋद्धि धारक मुनि ही इस ग्रंक से निकलने वाला अर्थात् ६४ अक्षर का एक शब्द ६३ अक्षर की एक शब्द ६२ प्रक्षर का एक शब्द जान सकते हैं । हम लोगों के ज्ञान-गम्य नहीं हैं। परन्तु श्वाचार्य कुमुदेन्दु ने इस समस्त विधि को गणित पद्धति से जान लिया था। इसलिए उनका परम पूज्य उस मूल - धवल सिद्धान्त का रचयिता श्राचार्य वीरसेन अपना शिष्य होते हुए भी इतना महान भूवलय जैसे ग्रंथ रचना से उनकी महान मेघा शक्ति को देख करके अपने शिष्य को ही अपना गुरु मानकर शिष्य बन गया। सो ऐसा महान प्रसंग दिगम्बर जैन साहित्य में नहीं मिलता है। लेकिन आचार्य जी को सल्लेखना लेने के समय मैं अपने शिष्य को अपना गुरु बना करके शरीर त्याग करने की परिपाटी मिलती है और चालू भी है परन्तु जीवित काल में ही शिष्य बनकर रहना महान गौरव की बात है।
ऊपर कहे हुए के अनुसार प्रतिलोम गुणा कर ५४ अक्षर की सरमाला
भावार्थ —
इसकी व्याख्या विस्तार के साथ ऊपर की गई है। इसलिए पुनरुक यहाँ नहीं किया गया है ।
४७६६८०७३१६१०४३७३५७१५३२६२१०६४१४६६१६५०६५७
५२०४११७४८६८४५७८२४०००००००००००० इस अंक के पूर्ण वैभव का अवयव अनुलोम पद्धति अनुसार है।
इस अंक में ७१ प्रक हैं इस अंक को आड़ा करके मिला दें तो २६१ होता है। इसको पुनः जोड़ दिया जाय तो हो जाता है ।
अर्थ - इस प्रकार नौ अंक में अन्तर्भाव हुआ इस अनुलोम क्रम के अनुसार ऊपर कहा हुआ प्रतिलोम के भाग देने से जो लब्धांक आता है वही भवभय को हरण वाले अंक है । ऊपर कहे हुए कोष्ठक में रहने वाले प्रत्येक लव्यांक को लेकर आड़ा करके रख दिया जाय तो ४६६१४६४७५१२६३०००००००००००० यही ५४ अक्षर का भागाहार लब्धांक यही अंक घाड़ा रखकर मिला देने से ६४ होता है। इस ६४ को मिला देने से से १० होता है। दस में भी १ एक ही है श्रर्थात् नम्बर १ अक्षर है और जो बचा हुआ बिंदी है। यही एक भंग से निकलकर आया हुआ भगवान के नीचे रहने वाले बिंदी रूप कमल है ।
भावार्थ-
गणित की दृष्टि से देखा जाय तो ऊपर के कहे हुए प्रतिलोम रूप छोटी राशि " नो" । इस नौ से भाग देने से अर्थात् नो को नो से भाग देने से बिंदी आना था। परन्तु अब यहां दस मिल गया यह आश्चर्य की बात है । गणित के संशोधन करने वाले गरिणतज्ञ विद्वानों के लिए महान निधि है इसी क को प्राथा करके कुमुदेंदु आचार्य भंगांक को निकालने की विधि को बतलाने वाले तीन श्लोकों में 'पांच' मिल जाता है । वह और भी आश्चर्य कारक है । 8 से ९ को भाग देने से शून्य थाना था। लेकिन ऊपर दस आया है नीचे पांच