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________________ लकम २१३ सिरि भूषजय सर्वार्थ सिद्धि संघ बंगलोर-चिल्लो पर कहे हुए अनुसार गुणन फल से ४०३२ निकला उस में १ और। ५५, २८,५२, ६४ मिला दिया तो इंगलिश का (fo) पाया अब इसमें से २ दो घटाइये तो कलम २८,५५,५२, ४०३० बाकी बचा और बचा हुआ ४०३० ये उलट कर ६४ और १ मिला मकल ५२,२८,५५, दिया जाय तो (fo इस fo को first, for furlang. लमक ५५, ५२,२८ इस तरह इङ्गलिश वाक्य रचना करने की मिसाल मिल जाती है। अब अनेकान्त दृष्टि तथा प्रानुपूर्वी क्रम से देखा जाय तो २८ की १ अब बचा हुआ ४०३० से और दो घटाने से ४०२८ वास होता है। इसमें बाधन को २, और ५५ को तीन माना जाय तो से दो दीर्घ 'या' और ६४ को मिलाने से off :: इन चार बिन्दुओं का १२३ खुलासा ऊपर के मुखपत्र चार्ट पर देखो। अब इसको उलटा करने से ::' २३१ 'या' ffo होता है इससे :: फादर father fast इस तरह वाक्य रचना ३१२ करने के लिए शब्द निकल पाते हैं । अब बचा हुआ ४०२८ में और दो निकाल देने से बचा हुआ २६ छब्बीस बच गया है। इसी तरह इसको भी इसी रीति से करते जाये तो अन्त में चार बिंदी आ जाते हैं। इसलिए इस भूवलय का गणित प्रामाणिक है ऐसा सिद्ध होता है । आगे इसी तरह करते जायें तो तीन ! ३२१ इस रीति से अन्त तक करते जायें तो छः ०००००० बिंदी अक्षर का शब्द निकल पाता है। कैसे निकल पाता हैं ? उस विधि को प्रायंगी इसलिए भगवान की दिव्य ध्वनि को भूवलय गणित के प्रमाण में अनेकांत बतलाते हैं से यह सत्य है एकांत से नहीं हैं । भगवान की दिव्य ध्वनि के द्वारा बारह मंग " ४०३२ को x ६२ से मुणा किया जाय । शास्त्र का प्रभाव हो गया इस समय वह शास्त्र मौजूद नहीं है। ऐसे कहने ८०६४ वाले दिगम्बर जैन विद्वानों की यह असमझ है। श्वेताम्बर आदि समस्त जैन २४१६२ जनेतर सभी विद्वान् अपने पास बचा हुआ थोड़ा बहुत अंकात्मक श्लोक को २४६६८४ भगवान महावीर की दिव्य ध्वनि निकल पायी ।।ही भगवद् वाणी मानते हैं। तो भी भूवलय ग्रंथ में कहा हा गणित तीन लोक और तीन काल में रहने वाले तथा होने वाले पद्धति के अनुसार एक भी श्लोक नहीं निकलता है। इसलिए वे सब जो श्लोक समस्त भाषानों की पौर समस्त विषयों की तीन अक्षर के शब्द निकल! हर के शब्द निकल ! से परिमित संख्या वाले हैं वे एक भाषात्मक कहलाते हैं। इसलिए वे परिमित पाते हैं। इन तीन अक्षरों की वाणी ही द्वादशांग वाणी है ऐसे कहते हैं।। श्लोक भगवान की दिव्य ध्वनि नहीं कहलाते हैं। भगवान की तीन अक्षरों की वाणी को छोड़कर अन्य प्रचलित किसी वेद में भी दिगम्बर विद्वान लोग कहते हैं कि हमारे पास इस समय अंग ज्ञान देखने में नहीं आता है, इसलिए यह भूबलय ग्रंथ प्रमाण है। उसका क्रम इस की व्युच्छुत्ति हुई है । उनका कहना भी सच है । क्योंकि सम्पूर्ण तरह से है कि विषय और सम्पूर्ण भाषाओं को बतलाने वाले कोई भी साधन रूप 'कमल, ऐसा एक शब्द लीजिये बतलाने वाले की भूवलय ग्रन्थ की क से पढ़ने की परिपाटी तेरह सौ वर्षों कमल २८.५२,५५, I से अर्थात् श्री प्राचार्य कुमुर्देदु के समय से आज तक अध्ययन अध्यापन की मलक ५२.५५.२८, परिपाटी बंद होने के कारण अंगादि विच्छेद मानने लगे थे। अब यह भूवलय
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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