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सरि भूषवप
सर्वार्थ सिदि संपलं गलोर-बिल्ली शेष रह जाय तो वह सर्वज्ञ वाणी पोसे होगी? इस जटिल प्रश्न का, इस । इतने बड़े अंश अर्थात् चौरासी स्थान पर बैठे हुये सब के सब महान् अंक मुख्य प्रश्न का अगर हल हो जाता है तो जैन धर्म सार्व धर्म हो सकता है।। नौ के अन्दर गर्भित हो गये हैं यह कितने आश्चर्य की बात है? परन्तु जैन धर्म सार्व धर्म होते हुए भी वह ताले में या विस्तर में बंद होकर
यह बात पाश्चर्य की नहीं है बल्कि इसे- भगवान के केवल ज्ञान की गुप्त रूप में ही रह गया। उसका दर्शन अन्य लोग या जैन विद्वानों की महिमा समझना चाहिए। पांसों के सामने मा नहीं पाया। यह दोष केवल जैन विद्वानों पर ही नहीं पर टो केवल जंत विद्वानों पर टीनरी
५४ अंक को संयोग भंग से प्रतिलोम के कम से ५४ बार गुणा है विज्ञानादि साधनादि वस्तुओं के संग्रहालय करोड़ों रुपये व्यय करके अपने करते माने से यह यक निकल पाता है। इसकी विधि इस तरह है कि--.' हाथ में रहने वाले पाश्चात्य विद्वानों के हाथ से भी नहीं हुपा परन्तु धी भवलय
६४४६३ = ४०३२ इसमें दुनियां की सम्पूर्ण भाषामों के दो प्रकार अन्य का अध्ययन परम्परा जैन विद्वानों के द्वारा चली आती तो जैन धर्म
का सम्पूर्ण शब्द निकल आते हैं। एक बार याया हुमा शब्द पुनरुक्त नहीं
याता है। का भी उद्धार होता जाता और सारे संसार का भी उद्धार हो जाता।
उदाहरणार्थइस श्लोक के द्वारा यह निष्कर्ष निकला कि नौ अंक सात से विभतर
१ को अ और ६४ का : फ : ५ दोनों मिलकर (म फ) होता है यह होकर शून्य पा जाता है। ये कैसे ? जैसे प्राचार्य कुमुदेन्दु स्वयमेव प्रश्न
भाषा इंगलिश है। सभी लोग ऐसा कहते हैं कि इंगलिश भाषा ईसा मसीह के उठाकर उसका समाधान करते हैं कि यह शंका परमानन्द वाली है, ऐसा बताते
समय से प्रचलित हुई है इसके पहले ग्रीक भाषा थी इङ्गलिश नहीं थी। हैं। इस उत्तर का समाधान करते हुए आचार्य ने ऊपर दी हुई गरिगत विधि
परन्तु भूवलय ग्रन्थ से साबित होता है कि इङ्गलिश भाषा पहले भी मौजूद को बतलाया ॥७॥
थी। भगवान महावीर की वाणी के अन्दर भी यह भाषा मौजूद थी। पाश्र्व-नौ अंक को अपने नीचे रहने वाले ८ पाठ ७ सात ६ छः ५ पांच
नाथ भगवान को वाणी में भी मौजूद थी। इसी तरह केवल भगवान वृषभचार ३ तौन २ दो इन संख्यामों में विभाग होने की विधि को प्राचार्य ने
देव तक ही नहीं परन्तु उससे मी पहिले से अनादि काल से यह भाषा मौकूद थी करण सूत्र में ऐसे कहा है और एक संख्या से सब संख्या का विभाग होता
अगर यह बात भूवलय सिद्धान्त अन्य से उनको मालूम हो जाय कि यह इङ्गलिया
भाषा अनादि काल से मौजूद है तो लोगों को कितना आनन्द होगा। इसी तरह नौ और चार मिन कर ०००००००००००००ये तेरह बिदी अन्त में
कानड़ी, गुजराती, तेलगु, तामिल इत्यादि नयी उत्पन्न हुई हैं ऐसा कहने वालों को रखना चाहिए और पहले बिंदी से बांये माग से २, ३, ४, ६ यहां तक पाठ
भो इस विषय को जानना चाहिए। श्लोकों का प्रथं पूर्ण हुआ।
अब देखिये इसी गणित पद्धति के अनुसार कहीं इङ्गलिश भाषा का गौतम वापर से जब किसी जिज्ञासुने प्रश्न किया कि भगवान के करण । शब्द निकाल कर देते हैं वह इस प्रकार है कि:सूत्र की विधि क्या है? ऐसा प्रश्न करने से गौतम गरगधर ने उत्तर में कहा
(of) 4032 कि करण सूत्र अनेक हैं उनमें से एक यह करण सूत्र है । इस सूत्र से जो प्रक
फिराने से fo 64 and 1
4030 निकले हुए है उन सभी अक्षरों को द्वादशांग वाणी ही समझना चाहिए । कुल प्रक
(off) 2nd 642
" foo , 2 चौरासी स्थान में ही बैठा है सबका जोड़ लगाने से तीन सौ उनत्तर (३६६) मंक होते हैं। प्रकों को पुनः जोड़ने से १८, प्रठारह को पुन: जोड़ने से (if)4,64
4026 होते हैं जैसे ३+६+६=१८ अब अठारह आ गये, इस १८ को १-८-९
4028