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________________ सिरि भवजय सवार्थ सिवि संघ क्लोर-दिली (मंगल प्राभूत का दूसरा अध्याय, पद्य एक से बाईस तक) . ..१-४०२४.८०८३१६१०४३८३५७१५३२६२१०६४२४६६१६५७६५८५२०४११७४८६८४५७६२४००००००००००० -२-८०४८१६६३२२०३७६७१४३०६५२४२१२८४६६८३३१५३१७०४०८२३४६७३७११५६४८ ३-१२०७४३६४:४६४८३१३१५०७१४५६७८६३१६२७४६७४७५५६१२३५२४६०४६७३४७२ ४-१६०६६ १६६२३३२६४४१७४३४२८६१३०४८४२५६६६६६६६३०६३४०८१६४६६६४७४२३१२६६ ५. २०१२३६४६०४१५८०५२१६१७८५७६६३१०५३२१२४६५८२८८२६२६०२०५५७४३४२७८४१२० ६-२४१४८७XECE६६२१३०१४२६१६.५७२६३८५४६६४६६४५६५११२२४७०४६२११३४६४४४ ७-२८१७३५४८६५८२१२७३०६८५०८८७२८३४७४४६७४६४१६०३६०६६४२८२२४-७६E0४७६८ ६-३२१९८३६८४६६५२८८३५०६८५७२२६०६९८५१३६६E.३३२६१२६०१६३२६.३६८६४८४६२५६२ t-३६२२३१६८२७४८४४६३६४५२१४३७६.३५८६५७८२१६२४६१८६२६६८३७०५७३८१७०२८४१६ - अर्थ-प्रथम अध्याय में 'हक' पाइड का विषय पाया है। पहले अध्याय अब ५४ अक्षर को घुमाने से इसके अन्दर वह महत्त्व निकलता है। के पांचवें लोक में भी हरु पार का विषय प्राथा है। भूवलप प्रतर भग विषय को ७ वें श्लोक में स्वयं कुमुदेन्दु प्राचार्य कहेंगे ॥६॥ कर गणित के नियमानुसार यदि कर लिया तो "ह" का अर्थ ६० और "क" ऊपर कहे हुए संपूर्ण नव पदों का अर्थात्- . का अर्थ २८ इन दोनों के परस्पर में मिलाने से ८८ होता है। ६० में जो १ सिरिसिद्ध, २ अरहन्त, ३ प्राचार्य, ४ पाठक ५ वर सर्व बिंदो थी उस बिंदी का लोप हो गया अन यह नहीं दीखती । जो ८८ अंक साधु ६ सद्धर्म, ७ परमागम, ८ चैत्यालय, . और बिम्ब उत्पन्न हुआ है उसको यदि पाड़ी रीति से जोड़ दिया जाय तो +८=१६ ओंवत्त ॥ होता है। १+६७ हुआ इस गणना के अनुसार भगवान महावीर ने सात इन नौ पदों में सात अंक से भाग देने से बिंदियां पाती हैं। इसके भंग के नियमों के अनुसार अनादि कालीन संपूर्ण द्वादशांग को इस गुणाकार का यही एक महत्व है। आज कल प्रचलन में पाने वाले पाश्चात्य गणित की विधि से निकाल कर भव्य जीवों को उपदेश दिया था। शास्त्र में नौ अर्थात् विषमांक को सम प्रकों से भाग देने पर बिंदी नहीं पाती श्री भगवान पार्श्वनाथ तक आये हुए समस्त द्वादशांगों का विवेचन उदाहरणार्थ नौ अंक को दो अंक से भाग देने पर ४ (चार) दफे नौ चौ भगवान पार्श्वनाथ ने टक भंग में लिया या। १-१-१-३६ + वह टक भंग आकर शेष नौ बच जाता है । पर इस तरह बचना नहीं चाहिए । यह पाश्चात्य भी अनादि द्वादवाांग में ही मिल गया है और पाये भी मिलता हो जाएगा। गणित शास्त्र की अपूर्णता समझना चाहिए। यह भूवलय भगवान महावीर भगवान महावीर ने श्री पाश्वनाथ भगवान के टक भंग से लेकर हक भंग से को बागी होने के कारण और संपूर्ण प्रश को जानने वाला होने के कारण उपदेश किया। केवल ज्ञान की ऐसी महिमा है कि अने केवल ज्ञान से सम्पूर्ण ऊपर कहे हुए नो अंक दो से विभक्त होकर बिंदी पा जाना और ७-६-५-४ वस्तुओं को एक साथ जानने को शक्ति केला म होती है, अतः जैसे है वैसा इत्यादि पूर्ण अंकों से विभक्त होकर शून्य शेष रहने वाली विधि को बतलाने ही यथार्थ पदार्य द्वादशांग वाणा में कहा गया है। वाले को सर्वज्ञ कहते हैं। ऐसे नौ अंक किसी ग्रंक से विमत नहीं हा वा .. +११३१६ ऐगा कहने से प्रथम संड मंगल प्राभूत समझना चाहिए। दूसरा जो यह है कि इसे निशान श्लोक संख्या समझना चाहिए । भागे इसी तरह क्रम समझना चाहिए। क-क्यनकक्कानम-वाचकानरम-गकामकाज
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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