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सिरि भूवजय
पर 8 [नी] हो गये इस नौ के ऊपर कोई श्रंक ही नहीं है। अर्थात् एक बिन्दी को एक दफे काटा जाय तो तीन बन गया दूसरी बार गुणा करने से नौ बन गया यही भगवान् जिनेन्द्र देव का व्यवहार औरनिश्चय नय कहलाता है । इस प्रकार यह संपूर्ण भूवलय ग्रन्थ व्यवहार और निश्चयनय से भरा हुआ है। नो के ऊपर कोई भी श्रंक नहीं है। तो नम्बर में ही चार और छः आ जाता है । ऊपर के कथनानुसार भगवान् ने ब्राह्मी देवी की हथेली पर जितना अक्षर लिखा था वह सब चार और छः अर्थात् चौंसठ ये सभी नो में ही समाविष्ट है। इसी चोट अक्षर को गति पद्धति के अनुसार गिनते जायें तो संपूर्ण द्वादशांग शास्त्र निकल आता है। इसका खुलासा आगे चल र नुसार करेंगे ।
आवश्यकता
श्री दिगम्बर जैनाचार्य कुमुदेन्द्र मुनिराज श्राज से डेढ़ हजार वर्ष पहले हुये हैं जो महा मेघावी तथा द्वादशांग के पाठी, सूक्ष्मार्थ के वेदी और केवल ज्ञान स्वरूप तो शंक के संपूर्ण अंश को जानने वाले थे । इसलिये छः लाख इलोक परिमित कानी सांगत्य छन्द में श्राज कल सामने जो मौजूद हैं वह नौ अंकों में ही बन्धन करके रक्खा हुआ है । उन्ही नौ श्रों से सातसी आठरह भाषा मय निकलता है ।
ये किस तरह निकलती है सो आगे चलकर बतायेंगे । भगवान ऋषभदेव ने एक बिन्दो को काटकर अंक बनाने की विधि बताकर कहा कि सुन्दरी देवी ! तुम अपनी बड़ी बहिन ब्राह्मी के हाथ में ६४ वर्ण माला को देखकर यह चिन्ता मत करो कि इनके हाथ में अधिक और हमारे हाथ में अल्प है। क्योंकि ये ६४ वर्ण के अन्तर्गत ही है। इसके अन्तर्गत ही समस्त द्वादशांग वाणी है। यह बात सुनते ही सुन्दरी देवी तृप्त हो गई ।
इस प्रकार पिता-पुत्री के सरम विद्याओं के बाद-विवाद करने में संसार के ममस्त प्राणियों की भलाई करने रूप ज्ञान भण्डार का - संक्षिप्त समस्त इतिहास ध्यान से मन लगाकर गोम्मट देव ने सुना ।
सर्वार्थ सिद्धि संभ बैंगलौर-दिल्ली
इस प्रकार मन को मंथन करके सुनने के कारण ही गोम्मट देव का नाम मन्मथ [ कामदेव ] हुआ । पहिले गोम्मट देव को उनके पिता जी ने कामकला और सभी जीवों का हितकारी आयुर्वेद अर्थात् समस्त जीवों का रोग दूर करने वाला अहिसात्मक बंधक शास्त्र सिखलाया था। अब अक्षर और श्रंक दोनों विद्याओं के मालूम हो जाने पर परमानन्दित होते हुये भगवान् से पहले सीखी हुई विद्याओं की वर्षा का स्वरूप प्रकट हुआ । ६४ अक्षर का गुणाकार करने से वे ही व बारम्बार आते रहते हैं, इसलिए अपुनरुक्त कैसे हुआ ? ६ अंक के ऊपर पुनः १ अंक की उत्पत्ति है और १० की उत्पत्ति होती है। वह १० का ग्रंक पुनरुक्ति है । ऐसा सभी श्रंकों का हाल है । इसलिए पुनरुक्ति हुआ । जब भगवान् ने ब्राह्मी देवी को ६४ प्रक्षर और सुन्दरी को ६ घ क सिखाया तथा अपुनरुक्त रूप से सारी द्वादशांग वाणी निकलती है और प्रपुनरुक्त से निकलता है, ऐसा बताया। ६४ के ऊपर पैंसठवां अक्षर तथा 6 के ऊपर १० ये दोनों प्रक्षर श्रीर पुनरुक्त हो है। इसी प्रकार अगले प्रक और अक्षर दोनों क्रमशः यानी प्रथा, ११-१२ इत्यादि पुनरत होते जाते हैं।
भगवान् ने कहा कि ये
६४ अक्षर और अंक अपुनरुक्त है, यह कैसे हुआ ? इसके बोर में भगवान् ने उत्तर दिया। ऐसा कहने में भगवान् से जो उत्तर मिला वह अगले श्लोक में आयेगा ।
अव कामकला और आयुर्वेद इन दोनों विषयों की चर्चा चल रही हैं । किन्तु कामकला का जो विषय है वह यहाँ चलने के लायक नहीं है कि पिता और पुत्र पिता और पुत्रियों, भ्रातृ और भगिनी उसमें भी ब्रह्मचारिणी भगिनी उसके समक्ष कामकला का वर्णन सर्वथा अनुचित है कामकला तो पवित्र प्रेम वाले पति-पत्नी और अपवित्र प्रेम वाले वेश्या और कामुक पुरुषों में होता है, ऐसी शंका उठाने की जरूरत नहीं है। क्योंकि यहाँ रहने वाले दोनों पिता-पुत्र तद्भव मोक्ष भागी है। अर्थात् पुनर्जन्म नहीं लेने वाले हैं और दोनों स्त्रियों ग्रहा