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सिरि भूवलय
सवार्य सिद्धि संघ बेंगलोर-विल्ली
क्योंकि यह लिपि आदि तीर्थकर श्री अषभनाथ भगवान की सुपुत्री । ब्राह्मी देवी के हाथ में भगवान ने अपने दायें हाथ से आधुनिक लिपि ब्राह्मी देवी के नाम से अंकित है।
के समान लिखा और सुन्दरी देवी के हाथ में बायें हाथ से लिखने की श्री कुमुदेन्दु आचार्य कहते हैं कि सबसे पहले श्री प्रादिनाथ भग
आवश्यकता पड़ी। 'वान ने ब्राह्मी देवी की हथेली में जिस रूप में लिखा था वह आधुनिक इसी कारण बायें से दायीं मोर वर्णमाला लिपि तथा दायें से कानड़ी भाषा का मूल स्वरूप था।
बायीं ओर अंकमाला लिपि प्रचलित हुई। प्राचीन वैदिक और जैन - उपयुक बात को देखकर पिताजी (भगवान आदिनाथ) शास्त्रों में "कानां वामतो गतिः" ऐसा लेख तो उपलब्ध होता था किन्तु की जंघा पर बैठी हुई सुन्दरी देवी ने प्रश्न किया कि पिताजी? उसके मूल कारण का समाधान नहीं हो रहा था। इस समय इसका बहिन ब्राह्मी को हथेली में जो आपने लिखा वह कितना है? जिस समुचित समाधान भूवलय से प्राप्त होकर उसने सभी को चकित कर प्रकार किसी विश्वस्त व्यक्ति का सहयोग लेने के लिये यदि प्रश्न किया। दिया है । इस समाधान से समस्त विद्वद्वर्ग को सन्तोष हो जाता है। जाय कि हमें अमुक कार्य करने के लिये रुपये की आवश्यकता है। सो तत्पश्चात् भगवान् प्रादिनाथ स्वामी जी ने उपरोक्त नियमानुसार अापके पास मौजूद है या नहीं ? तो उसके इस प्रश्न पर यदि वह कह सुन्दरी देवी की दायीं हथेली के 'गूठे द्वारा १ बिन्दी लिखी और दे कि मैं आपको पूर्ण सहयोग दूंगा तो रुपये पैसे का कोई प्रश्न । उसके मध्य भाग में एक प्राड़ी रेखा खींच दी। उस रेखा का नाम नहीं उठता क्योंकि पूर्ण रूप से महयोग देने की प्रतिज्ञा कर लेने के ।
कुमुदेन्दु प्राचार्य ने अद्धच्छेद शलाका दिया है और छेदन विधि को कारण वहाँ पैसे के प्रमाण की कोई पावश्यकता नहीं रह जाती पर शलाकार्षच्छेद अर्थात् एक दम बराबर काटने को कहा है। जब बिन्दी यदि गरािब हो जागो या तिने ने मा सहयोग देंगे ऐसा प्रश्न को प्रभाग से काटा गया तब उसके बराबर दो टुकड़े हो गये। करते ही रुपये की संख्या की जरूरत पड़ जाती है। इसी प्रकार जब कानडी भाषा में ऊपरी भाग को [१] तया नीचे के भाग को [२] सुन्दरी देवी ने यह प्रश्न कर दिया कि पिताजी ब्राह्मी बहिन की हथेली। कहते हैं, जोकि थोड़े से अन्तर में आज भी प्रचलित हैं। में जो आपने लिखा वह कितना है ? तो तत्काल ही उन बरणों की संख्या ये दो टुकड़े नीचे के चित्र में दिये गये हैं। इसे देखने से पाप की आवश्यकता पड़ गई।
लोगों को स्वयं पना चल जायेगा। तब भगवान ने कहा कि बेटी ! तुम अपना हाथ निकालो, बाह्मी एक टुकड़े से दो-दो टुकड़े से तीन चार, छः, सात, पाठ और की हथेली में हमने जो लिखा सो बतलायेंगे ।
नौ और एक बिन्दी और टुकड़ा मिलाने से पांच अर्थात् चार को एक, अब यहां यह प्रश्न उठता है कि सुन्दरी देवी को कौन मा हाथ टुकड़ा मिला देने से पांच बन जाता है। इन सब प्रकों को. निकालने में तथा भगवान् श्रादि-नाथ को किस हाथ से लिखवाने में एकत्रित कर मिलाया जाय तो पहले के समान बिन्दी बन जाती है। सुविधा हुई?
इसका स्पष्टीकरण मागे पाने वाले २१वें अध्याय में अन्यकार इसका उत्तर यह है कि जिस प्रकार ब्राह्मी देवी के हाथ में स्वयं विस्तार पूर्वक कहेंगे । यदि उपयुक्त विधि के अनुसार अंकों की भगवान ने अपने सीधे हाथ से लिखा था उसी प्रकार सुन्दरी देवी के । गणना की जाय तो विदी के दो टुकड़े होने पर भी कानड़ी भाषा में
हाथ में लिखने की सुविधा नहीं थी। क्योंकि ब्राह्मी देवी भगवान् की 1 ऊपर का टुकड़ा एक और नीचे का टुकड़ा दो होने से तीन हो गये .... बायीं जंघा पर बैठी हुई थी और सुन्दरी देवी दाहिनी जंघा पर । अतः । अर्थात् १ + २ = ३ हो गये । इन तीनों को तीन से गुणा करने ........