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सी भूपलय
सर्वार्थ सिदिसंभ, मैंगलोर-दिल्ली देने से ७२५००० इतने कानड़ी श्लोक संख्या होते है। इतने श्लोकों । अंक बार-बार माते रहते हैं तो भी कुमुदेन्दु आचार्य ने अपुनरुक्तांक ही कहा से रचना किया हुया काव्य इस संसार में और कोई कहीं भी नहीं है। महा है। यहां पर विचार कर देखा जाय तो अनेकान्त की महिमा स्पष्ट हो जाती भारत को सबसे बड़ा शास्त्र माना गया है। उसमें १२५००० श्लोक हैं। वे है। इस रीति से ६४ प्रक्षर भी बार-बार पाते हैं। संस्कृत होने के कारण से भूवलय में १०८ अक्षरों में एक कानड़ी श्लोक की
इन अंकों में से यह आदि भंग हैं ॥१०॥ अपेक्षा से महाभारत की श्लोक संख्या सवा लाख होने पर भी ७५००० हजार
इस क्रम के अनुसार २३ और ४ भंग है ।।१०६॥ मानी जायेगी इस अपेक्षा से यह भूवलय काव्य महाभारत से छः गुणा बड़ा है
इसी क्रम से ५६ ७ ८ भंग है11१०७॥. बल्कि छ: गुरणा से ज्यादा ही समझना चाहिए। इस भूवलय के अंक ५१०
इसी तरह ११० ११ भंग होते हैं ।।१०।। ३००००हैं। इन अंकों को चक्र रूप में कर लेना हो तो ७२६ से भाग देना होगा इसी तरह १२ १३ भी भंग होते हैं 11१०६! तब ७०.९९ इतने चक्र बन जाते है। परन्तु यदि हम अपने प्रयत्न से चक इसी क्रमानुसार १४ १५ भंग हैं ॥११०।। बनाना चाहें तो १६००० ही बना सकते हैं । शेष के ५४०६६ चक्र बनाने का
इसी रीति से १६ १७ मंग हैं ।।१११॥ ज्ञात हमारे अन्दर नहीं है। किन्तु उन १६००० चक्रों को भी यदि निकालने का दो नौ मिलकर अठारह भंग हुए ॥११२|| . अयल किया जाय तो उनके निकालने में भी इतने महान करोड़ों अंक भी [3] इसी तरह १९ २० भंग होते ।।११३॥ इस एक अक्षर में गर्भित हैं। इस तरह से १७० वर्ष लगेंगे । रूपी और प्ररूपी उसके प्रागे १ २ ३ अर्थात् २१ २२ २३ भंग है ॥११४॥... ...
भी द्रव्यों को एक ही भाषा में वर्णन करने वाला यह सूबलय नामक ग्रन्थ है।। इसी क्रम के अनुसार ४ ५ ६ ७ ८ अर्थात् २४ २५ २६ २७ २८ मंग इसका दूसरा नाम श्री पद्धति भुवलय भी है ।।६६।।
होते हैं 11:१५॥ श्री सिद्ध २ अरहन्त ३ प्राचार्य ४ पाठक अर्थात उपाध्याय ५ सर्व इसा क्रम से नौ अर्थात २६ और ३० भंग है ॥११६|| ... साँघु ६ सद्धर्म ७ परमागम, परमागम के उत्पत्ति कारण चैत्यालय और
इसी तरह ३१३२ के क्रमानुसार ३६ तक जाना चाहिए ।।११७॥ जिन बिम्ब इस तरह नौ अंक में समस्त भूवलय को गभित कर रचना किया
- इसी क्रम से ५० से ५६ तक जाना चाहिए ॥११॥ . . . . हुआ ये सम्पूर्ण अंक है ।।६॥
उसके बाद ६०वां भंग आ जाता है ।।११६॥ दया धर्ममयी इम अंक को रत्नत्रय मे गुणाकर देने से Ex = २७ तत्पश्चात् १-२-३-४ अर्थात् ६१-६२-६३-६४ इस तरह भंग पाता है,
॥६॥ उन सभी को मिलाने से ६४ भंग पाता है। ये ही ६४ भंग सम्पूर्ण भूवलय इस सताईम को २७४३ = ८१ ॥६६।।
है ।।१२।१०१।१२२ ।। इसी तरह भूवलय में रहने वाले ६४ अक्षर बारम्बार पाने रहें तो भी
उन ६४ भंगों के क्रम के अनुसार प्रतिलोम और अनुलोम के क्रमानुअपूनरुक्त अक्षर का ही समावेश समझना चाहिए ॥१०४।।
सार अंक और शब्दों को बना दिया जाय तो ६२ स्थानात पा जाता है। इसमें कोई शंका करने का कारण नहीं है, भूवलय के प्रथम खण्ड मंगल
६४ प्रक्षरों को १ से गुणाकार करने पर ६४ पाता है। इस ६४ को प्राभृत के ४६ वें अध्याय में २०,७३,६०० बीम लाख तिहत्तर हजार छ: सौ अंक।
असंयोगी भंग अथवा एक संयोगी भंग कहते हैं। क्योंकि श्रुतज्ञान के इन हैं। उन सभी के १२७० चक्र होते है इसको अक्षर रूप भूवलय की४ अक्षरों में से जिस अक्षर का भी हम उच्चारण करते हैं तो वह वस्तुतः गिनती से न लेकर चकांक की गिनती से ही लेना चाहिए। ऐसे लेने से नौ। अपने मूल स्वरूप में ही रहता है । इसलिये इसको असंयोगी भंग कहते हैं ।