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सिरि भूवलय
सर्वार्थ सिद्धि संघ, बंगलोर-विल्नौ
हक भंग से सब तीर्थकरों द्वारा द्वादशांग वाणी का प्रचार हा यह तो इस प्रकार जघन्य संख्यात दो है। सर्वोत्कृष्ट संस्थात नौ है तो एक अटल बात है परन्तु चौबीसवें तीर्थकर श्री महावीर ने गोनम गणधर को सम- नम्बर में अनन्त भी है, असंख्यात्त भी और संख्यात भी हैं ।। ४० ॥ झाने के लिए ट्क भंग को स्वीकार किया था। ट्क भंग से गौतम गग्गवर ने इन तीनों दिशाओं से आई हुई अमन्त राशि को संख्या राशि से बारह अंग को जान लिया और उसी को सम्पूर्णभव्य जीव को गूंथ कर समझा मिनी किण जावे तो प्रत्येक राशि में अनन्त ही निकल कर पाता है। ऊपर दिया है ।।३६॥
भगवान के समवसरण बिहार के समय में बताये हुये जो सात कमल हैं, इस बारह अंग शास्त्र का अध्ययन करने से सवार्यसिद्धि की प्राप्ति: उन कमलों को जलकमल मानकर उन जल कमलों से रससिद्धि या होती है । अर्थ का मतलब चौंसठ अक्षर होता है उन अक्षरों को भंग करने से पारा की सिद्धि बन जाती है। कुमुदेन्दु प्राचार्य ने इस सिद्धरस को दिव्य रस १२ अंक मा जाता है फिर घटाते चले जाये तो वही ६४ अंक पा जाता है, I सिद्धि कहा है ॥४१॥ और बस अंक भी मिल जाता है ।। ३७।।
पाँचवां श्लोक में जो 'हक' भंग पाया है उसमें E६ की संख्या है । उस ___मर्म रूपी इस बस को उपयोग में लाने से नमस्त मिद्धान्त का ज्ञान हो अठामी वर्ग स्थान में जो गुप्त रीति से छिपा हमा है, उसका नाम श्री पदम जाता है। जो कि पहले कहे हुये जिनेन्द्र देव के चरण कमल की सुगन्ध को। है । भगवन्त के जन्म कल्याण के समय के पीछे गर्भावतरण के समय में जिन फैलाने वाला है ॥३८॥
माना को जो सोलह स्वप्न हुए थे उस स्वप्न समय का जो कथन है उस कथने इस दश के अक का पर्द्धच्छेद कर देने से पांच का अंक पा जाता है । के अन्दर जो पद्म निकल कर पायेगा उसका नाम स्थल पद्म है। उस पद्म जो कि पंच परमेष्ठी का वाचक है । इसी अंक से मध्यलोक के द्वीप सागरादि में पारा को घर्षण किया जाय तो महौषधि बन जाती है ।॥ ४२ ॥ की गणना हो जाती है तथा नागलोक, स्वर्ग लोक,, नर और नरक लोक पुनः उमी अठासी को जोड़ दिया जाय तो सात का कथन निकल एवं मोक्ष स्थान तक की गणना की जा सकती है। इन्हीं तीन लोकों के धन पाना है । इस कथन के अन्दर जो कमल आकर मिल जाता है उसको पहाड़ी राजुगों को पिण्ड रूप बनाने से वही दश का क पा जाना है अर्थात् ३४३ पदम या कमन मे कहते हैं। इस प्रकार जल पद्म स्थल पद्म और पहाड़ी को क्रममाः जोड़ देने पर दया बन जाता है। इस बात को दिखलाने वाला यह पद्म मे तीन पद्म इस गिनती में मिल गये । इन तीनों पद्मों को कुमुदेन्दु अंक रूपी भूवलय है ॥ ३६॥
पात्रार्य ने इगी भूवलय के चौथे खण्ड प्राणावाय पूर्व के विभाग में अतीत कमल यह एक का अक महाराशि है, उस राशि को गिनती किसी दूसरे
अनागत कमल और वर्तमान कमल इन तीनों नामों से भी कहा है। मंक से नहीं होती है । अतएव इस राशि को अनन्त राशि कहने है। क्योंकि
इसका मतलब यह है कि प्रनीत चौबीम तीर्थकरों के चिन्हों से गिनाया हुआ इस राशि में से आप कितनी ही एक-एक रागि निकालते चले जानो नो भी
जो नाम है वह अनागत कमल है। इसी तरह वर्तमान चौबीस तीर्थंकरों का उमका अन्त नहीं हो पाता है जिनना का जितना ही कह रहता है। मे करते
लांच्छनों का गणित मे गिना हुआ जो नाम है वह प्रतीत कमल है । अनागत चौबीस हुए भी जिनेन्द्र देव के चरण कमल को १, २, ३, ४, गेमे १ तक गिननी करने
नोर्थकगं के चिन्हों से गिना हुअा नाम वर्नमान कमल है। का नाम संख्यात है और प्रसंन्यात भी है। संख्यात राशि मानव के असंख्यात "कु'भानागत सद्गुरु कमलजा' अर्थात् अनागत सद्गुरु ऐसे कहने राशि ऋद्धि प्राप्त मुनि पौर देव इत्यादि के लिए और अनन्त राशि केवलो से अनागत पीबीसी इसका अर्थ होता है। कुंभ अर्थात् जो कलश है वह १६वें भगवान के गम्य है।
तीर्थकर का चिन्ह है। इन तात्विक शब्दों से भरे हुए तथा गणित विषय से