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________________ सिरि भूवलय सर्वार्थ सिद्ध संघ, बगलोर-दिल्ली ऐसे इस भूवलय के अंक फोटो कर लेने से उसके सब भंकाक्षर भान होकर सफेद बन गए हैं। उसी तरह जीव द्रव्य से शब्द निकलता है । उसी तरह यह अंक सिद्ध हुमा । यह भूवलय ग्रंथ है। तरह दिगम्बर जैन मुनि सम्पूर्ण वस्त्रादि परिवह से रहित अर्थात् । निरावरण आकापा के समान होते हैं। मेयर एदारीर मात्र उनक पास परिग्रह है। इस रूप में होते हुए दशों दिशा रूपी वस्त्रको धारण किए हुए हैं। यह शब्द उपमा रूप में है 1॥१०॥ अनादि काल रो इस तरह मुनियों के द्वारा बनाया हुमा यह भूवलय नाम का काव्य है ॥ ११ ॥ प्रात्म बल से बलिष्ठ होने के कारण इन्हीं मुनियों को ही बलशाली कहते हैं ।। १२ ॥ ऐसे दिगम्बर मुनियों के द्वारा कहा हा काव्य होने के कारण इसके श्रवण-मनन ग्रादि से जो पुण्य का बन्ध होता है वह बंध प्रतिम समय तक अर्थात् मोक्ष जाने तक साथ रहता है अर्थात् नाश नहीं होता इस भूवलय के धवरणमात्र से अनेक कला और भाषा आदि अनेक दैविक चमत्कार देखने को मिलते हैं इसी तरह सुनने और पढ़ने मात्र से उत्तरोत्तर उत्साह को बढ़ाने वाला यह काव्य है ॥ १४ ॥ इस प्रकार इस पवित्र भूवलय शास्त्र को सुनने मात्र से सम्पूर्ण पापों का नाश होता है ।। १५ ।। दिगम्बर मुनियों ने ध्यानस्थ होकर अपने हृदय रूपी कमल दल में धवल बिन्दु को देखकर जो जान प्राप्त किया था उसी के प्रतिशय को स्पष्ट कर दिखलाने वाला यह भूवलय है । अथवा यह धवल, जयघवल, महापवल, बिजयधवल और अतिशय धवल जैसे पांच धवलों के अतिशय को धारण करने वाला भूवलय है । जब दिगम्बर मुनिराज अपने योग में कमल दल के ऊपर पांच बिन्दुमों को श्वेन अर्थात् घबल रूप में जिस प्रकार एक साथ देखते हैं उसी तरह इस भूवलय गंच के प्रत्येक पृष्ठ पर तथा प्रत्येक पंक्ति पर इन पांच धवल सिद्धान्त अथ के एक साथ दर्शन कर सकते हैं और पढ़ भी सकते हैं ॥ १६ ॥ चौंसठ (६४) अक्षरमय गणित से सिद्ध अर्थात् प्रमाणित होने के कारण यह भूवलय सर्वोपरि प्रमाणिक काव्य है ।। १७ ।। अत्यन्त सुन्दर शरीर वाले आदि मन्मथ कामदेव, गोमट्टदेव (बाहुबलि) जिस समय अपने बड़े भाई भरत चक्रवर्ती को तीनों युद्धों में जीतते समय जब वैराग्य उत्पन्न हुया तब जीता हुमा सम्पूर्ण भरतखंड अपने भाई को वापिस दे दिया । तव खेद खिन्न होते हुए सकल चक्रवर्ती राजा भरत ने ( बाहुबलि ) से पूछा कि हमने राज-लोभ से आपके बज वृषम नाराच संहनन से बने हुए शरीर पर चक्र छोड़ा। जो पर-चक्र को मात करने वाला सुदर्शन चक्र है वह चक्र आपके शरीर को भी घात करे इस विचार से छोड़ दिया। यह सभी लोभ कषाय का उदय है । मैं इतना बलशाली होते हुए भी पुद्गल से रचा हुआ होने के कारण प्रापफे जानमयी शरीर रूपी चक्र का घात करने में असमर्थ होने के कारण तुम्हारे पास निस्तेज होकर खड़ा हुआ है । मैं इस निस्तेज चक्र को वापिस कर रहा हूँ, यह मुझे नहीं चाहिए। पहले पिता वृषभदेव तीर्थकर जब तपोधन में जाने लगे तब मैं, पाप, ब्राझी और सुंदरी इन चारों को नो अंकमय चक्ररूपी भूबलय में ६४ (चौंसठ) अक्षरों में बांधकर ज्ञानरूपी चक्र को बनाने की विधि को दिखाया था। उस समय हमने अच्छी तरह नहीं सुना था, इसलिए मुझे लोभ पैदा हुमा है । उसके फल ने ही मुझे निस्तेज कर दिया अर्थात् मुके हरा दिया । अब मुझे किसी से न हारनेवाले भूवलय चक्र को वापिस दो। कुम्हार के चक्र के समान संसार में घुमाने वाला यह चक्र मुझे नहीं चाहिए। तब बाहुबली ने कहा कि जंमा पाप कहते हो चैसा नहीं हो सकता। इस भरत खंड का पाप पालें मैं तो इसका पालन नहीं कर सकता है, क्योंकि मैं इस पृथ्वी को पूर्णरूप से त्याग कर चुका हूँ । इसलिये मुझ को तो अब ज्ञान रूप चक्र के द्वारा धर्म साम्राज्य प्राप्त कर लेने की प्राशा दो तब-इच्छा न होने पर भी भरत चक्रवर्ती को मानना पड़ा अतः भरत महाराज बोले कि यदि मेरा
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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