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________________ सिरि भूवनय सर्वार्थ सिद्ध संघ, बैंगलोर-दिल्ली जहाज के समान तिरछा चलता था। इस समय वही भगवान के चरण । है। अगर भगवान् के ज्ञान में कुछ वस्तु शेष रह जाती तो उनको कमल हमारे हृदय-कमल में चक्र की भांति घुमते हुए सर्वांग भक्ति को । सर्वज्ञ नहीं कहा जाता। इसलिये उनकी वाणी प्रमाण होने के उत्पन्न कर अत्यन्त शान्तमय बना देते हैं। इस प्रकार भूने के कारण कारण किसी को भामागता के विषय की शंका नहीं हो सकती। पाठवां अंक मिलता है, उस अंक से तथा उस गुणाकार से '' नो यही भगवान के ज्ञान में एक महत्व है । इसलिये आजकल भी भगवान नामक ग्रंक दो से भाग होकर अर्थात् विषमांक से भाग होकर शून्य महाबीर के कमलों की गंध का आस्वादन ऊपर कहे हुए गुणकार से रूप बन जाता है । यह गणित की क्रिया किसी को मालूम नहीं थी। भगवान के पद-कमलों को गुणकार करते हुए विशेष रूप से वस्तु को स्वयं वीरसेन प्राचार्य को भी यह नवमांक पद्धति विदित न थी। कुमु- जान सकता है । यही हमारे कहने का प्रयोजन है ॥ ७॥ देन्दु प्राचार्य ने इस विधि को अपने क्षयोपशम ज्ञान से जानकर गुरू से पूर्वापर विरोधादि दोष रहित सिद्धान्त शास्त्र महाव्रती के लिये प्रार्थना की। तब धीरसेन प्राचार्य प्रसन्न होकर बोले-तुम हमारे शिष्य हैं और परहंत मिद्धाचार्यादि नव पद की भक्ति अणुव्रत वालों के लिये नहीं परन्तु हम ही भापके निष्य है। जैसा उन्होंने अपने मुख से है । इस रीति से अणुव्रत और महाव्रत दोनों की समानता दिखलाते प्रकट किया है, इस बात का आगे चलकर खुलासा दिया गया है। हुए यह मूढ़ और प्रौढ़ अर्थात् विद्वान् दोनो को एक ही समान उपदेश यह विधि गणित शास्त्र जों लिये अधिक महत्वशाली है, बहुत देने वाला भूबलय शास्त्र है। जैसे कि कनाड़ी श्लोकों को पढ़ लेने से दूर प्राच्य देवा ( जर्मन इत्यादि ) से आने वाला (रांडार बम्बार मूढ़ भी अर्थ कर लेता है और इस कनाड़ी में भी विद्वान् अपने प्रथकमिशन ) पर्थात् राडर बिमान भारत के किसी एक बड़े भाग को नष्ट प्रथक दृष्टिकोणों से उन्हीं अक्षरों को ढूंढ़ते हुए प्रथक-प्रयक भाषा करने के लिये पाता है । तब तुरन्त ही भारत पाले अपनी साइंस से और विषय को निकाल लेते हैं ॥८॥ मालूम कर लेते हैं कि एक बड़ा विमान भारत के बड़े भाग को नष्ट जिन्होंने सम्यक्त्व के आठ मूल दोषों को निकाल दिया है और देवकरने के लिये पा रहा है। तभी वह कई स्थानों को सूचित कर, उस मूढता, गुरू मूढता और पाखंडी मूढ़ता को त्याग दिया है और दर्शनाविमान को गोली से.मार गिराने की प्राशा देते हैं । यदि गोली लग बरणी कर्म का नाश कर दिया है और क्षुधा, तृषादि बाईस परीषहों जाती है तो विमान नष्ट हो जाता है अन्यथा विमान अपना काम को जीत लिया है । ऐसे महाव्रतियों के प्रमाण से जो वस्तु सिद्ध हो पूर्ण कर लेता है। इसका कारण क्या है ? इसका उत्तर है कि गणित गई उस वस्तु को दुबारा सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं। यदि शास्त्र की अघूरता ही इसका कारण है। यदि भूवलय का गणिन कोई सिद्ध भी करे तो वह अविचारित रमणीय है। अर्थात् कुछ फल शास्त्र जमत में प्रचलित हो जाए और समांक का विषमांक से विभाग नहीं। यह भूवलय काव्य भी महाबतियों के शिरोमणि प्राचार्य के हो जावे तो सब सवाल हल हो जाते हैं। और एक दूसरे को मारने की द्वारा बनाया हुआ है अतः स्वयं प्रमाण है ॥ ६ ॥ हिंसा मिट जाती है । कहते हैं कि एक राजा के पास मारने का शस्त्र इस भूवलय काव्य में बतलाया गया है कि दस दिशा रूपी कपड़ों है और दूसरे के पास रक्षा करने का शस्त्र है तो उस मारने वाले शस्त्र 1 को अपने शरीर पर धारण करते हुए भी मुनिराज दिगम्बर कैसे बने ? का क्या लाभ अर्थात् कुछ नहीं। यही जैन धर्म का बड़ा महत्वशाली 1 जैसे सूर्य को दिनकर, भास्कर, प्रभाकर आदि अनेक नामों से अहिंसा का शस्त्र दुनिया को देन है । भगवान् महावीर के ज्ञान में कुछ । पुकारते हैं वैसे ही कदि लोग उस सूर्य को तस्कर भी कहते हैं . भी जानने में शेष न रहने के कारण उनके ज्ञान को सर्वज्ञ कहा । क्योंकि वह रात्रि के अन्धकार को चुराने वाला है। इसी
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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