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________________ उपराभापति-ला. मनोहरलाल जी जौहरी। अनुपस्थिति में यह समिति क्या कर नकेगी। हम तो स्वर्गीय के प्रति श्रद्धा के ला. मुन्शीलाल जी कागजी दो फल ही चढ़ा सकते हैं । केबल इतना और कह सकते हैं कि हम अपनो मन्त्री-श्री महताबसिंह जी बी० ए० एल.एल.बी.। गोर हो पुर्ग पयल करेंगे कि जो कार्य हम स्वर्गीय के जीवन में न करसके बह " आदीश्वरप्रसाद जी एम० ए०। उनके निधन के बाद अवश्य पूरा करें। ,, पन्नालाल जी प्रकाशक तेज । इस ग्रन्थराज का प्रारम्भ में इस समय केवल मंगल प्राभूत हो २५० कोषाध्यक्ष--श्री नेमचन्द जी जोहरी। पृष्ठों में प्रकाशित किया जा रहा है। ग्रन्थराज बहुत विशाल है और इसको संशोधक स्वर्गीय श्री यल्लप्पा शास्त्री। पूर्णतया प्रकाश में लाने के लिए सहस्रों पृष्ठ प्रकाशित करने पड़े में । प्रकाशन प्रबन्धक-ला. दुट्टनलाल जी कागजी। पार्य धर्म शिरोमणि श्री युगलकिशोर जी बिड़ला ने इस कार्य में अपना पूरा " श्री मुनीन्द्रकुमार जो एम० ए० जे० डी. सहयोग देने की स्वीकारता दी है। गत सप्ताह जैन जाति शिरोमणि दानवीर रघुवरदयाल जी। साह शान्तिप्रसाद जो तथा उनकी सौभाग्यवती पत्नी रमारानी जो देहली में सदस्य-ला० श्यामलाल जी ठेकेदार । थीं । वे दोनों प्राचार्य श्री के दर्शनार्य उनके पास आये थे । वे इस ग्रन्थ से तथा , जोतिप्रसाद जी टाइप वाले। इस ग्रन्थ के प्रति प्राचार्य श्री को लगन से अत्यन्त प्रभावित हुए और उन्होंने , प्रेमचन्द जो जैनावाच कम्पनी यह आश्वासन दिया है कि इसके भविष्य के कार्य-क्रम को रूप रेखा प्रादि उनके शान्तिकिशोर जी। पास भेज देने पर वे पूर्ण रूप से इस ग्रन्थ के उद्धार तया प्रकाशन में सहयोग " रणजीतसिंह जी जौहरी। दंगे। हमें आशा है कि उनके तथा बिड़ला जी के सहयोग से तथा आचार्य श्री , रामकुमार जी। के आशीर्वाद से हम इन कार्य को भविष्य में भी प्रगति दे सकेंगे। ग्रन्थराजके संशोधन तथा भाषानुवाद का कार्य प्राचार्य थी की छत्रछाया में छुल्लिका विशालमती माताजी,स्वर्गीय श्री यल्लप्पाशास्त्री, पं. अजितकुमार I हमें इस कार्य में देहली जैन समाज के अनिरिक्त दिगम्बर जैन समाज जी शास्त्री तथा पं.रामशंकरजी त्रिपाठी द्वारा शुरू किया गया। मुद्रण का कार्यगाना गुड़गा, गोहाना, रिवाड़ी, फरुखनगर तथा रोहतक आदि से भी प्राधिक श्री देवभूषण मुद्रणालय को दिया गया। कार्य सुचारु रूपसे चलता रहा। प्राचार्य - गरयोग प्राप्त हुआ है । ग्रन्थ के मुद्रण में जो कागज लगा है उसका अधिकतर श्री लगभग ८ घण्टे प्रतिदिन इस ग्रन्थराज के लिए देते रहे हैं। इसी प्रकार।। देहलो के माननीय सज्जनों ने उठाया है जिनमें निम्न नाम विशेष उल्लेखयल्लप्पा शास्त्री जी भी दिन रात इस कार्य में संलग्न रहे । इसी बीच में एक. हैं। ला. सिद्धोमल जो कागजो, ला० मनोहरलाल जी जौहगे, ला. महान दुर्घटना हो गयी जैसा कि सदैव होता ही है। भारत की स्वतन्त्रता 'मुन्शीलाल जो कागजी, लाल नेमनन्द जो जौहरो, ला. नन्नूमल जी कागजी, प्राप्ति के बाद शीघ्र ही देश को राष्ट्र पिता महात्मा गांधी की आहुती देनी ला. जयगोपाल जो आदि । पड़ी उसी प्रकार इस ग्रन्थ के प्रकाश में पाने से पहिले ही इस ग्रन्थ के संरक्षक 1 इस ग्रन्थ की ग्रारम्भ में २००० प्रतियां मुद्रण की जा रही श्री यल्लप्पा शास्त्री, अपने घर बैंगलौर से दूर इसो देहली में २३ अक्टूबर हैं। इनमें से १००० प्रतियां का समस्त व्यय देहलो जैन समाज के प्रमुख धर्म१९५७ को स्वर्गवास कर गये। आप केवल एक दिन हो बीमार रहे। अापका निष्ठ दानो स्वर्गीय ला. महावीर प्रसाद जी ठेकेदार ने अपने जीवन में हो देना निधन एक महान वचपात है, और आज भी समझ नहीं पाती कि उनको स्वीकार किया था। अन्य के मुद्रण को अधिक से अधिक सुन्दर बनाने में
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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