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________________ प्रकाशकीय वक्तव्य महान ग्रन्थ राज श्री भूवलय का परिचय जब भारत के राष्ट्रपत्ति महा- चतुर्मास समाप्ति पर प्राचार्य श्री ने देहली से बिहार किया प्रतः ग्रन्थ राज के महिम डा. राजेन्द्रप्रसाद जी को दिया गया तो उन्होंने इसको संसार का पाठबा प्रकाशन का कार्य स्थगित सा हो गया। प्राचार्य श्री सदंव इस ग्रन्थ को प्रकाश पाश्चर्य बताया । इस महान ग्रन्थ की रचना आज से लगभग १००० वर्ष पूर्व में लाने के लिए पूछते रहे परन्तु हम अपनी विवशाए बताते रहे । अन्त में दिगम्बर जैनाचार्य श्री १०८ कुमुदेन्दु स्वामी ने की थी। प्राचार्य । जब प्राचार्य श्री गुड़गावं में ये तो देहली के प्रमुख सज्जनों ने प्राचार्य श्री से श्री कुमुदेन्दु नन्दी-पर्वत के समीप, बैंगलौर से मीन दूर जाना की...कि वे जबतक देहली न पधारेंगे इस कार्य पा, प्रारम्भ होना वल्ली स्थान के रहनेवाले थे। वे मान्यखेट के राष्ट्रकूट राज के असम्भव है। प्राचार्य श्री पहले दो चतुर्मास देहली में कर चुके थे अतः देहली सम्राट अमोघवर्ष के राजगुरु थे। यह अपूर्व ग्रन्य अन्य ग्रन्थों से विलक्षण ६४ नहीं माना चाहते थे। परन्तु देहली निवासी लगातार प्राचार्य श्री को इस महान पड़ों में है जिससे कन्नड़ भाषा के हस्व, तथा दीर्घ आदि अक्षर बनते हैं। यह ग्रन्थराज के प्रकाश में लाने के हेतु-देहलो पाने के लिए प्राग्रह करते रहे । अन्त अन्धराज जैन धर्म की विशेषतया तथा अन्य धर्मों को संस्कृति का पूर्ण परिचय में प्राचार्य श्री ने इस कार्य को महानता तथा उपयोगिता को दृष्टि में रखते देता है। यह विज्ञान का भी एक अपूर्व ग्रन्थ है। इस ग्रन्धराज में १ महान हुए इस वर्ष देहली पाना स्वीकार किया। भाषाएँ तथा ७०० कनिष्ठ भाषाएँ गभित हैं। यदि इस ग्रन्थराज को भली आचार्य श्री अप्रल १६५७ में देहली पधारे । तत्काल ही तार आदि प्रकार समझा जाए तो इसके द्वारा मनुष्य का ज्ञान बहत अधिक उन्नति कर। देकर श्री यल्लप्पाजी शास्त्रीको बेंगलौरसे बुलाया गया। भाग्यवश भारतके प्रमुख सकता है । इस ग्रन्थ का कुछ भाग माइक्रो फिल्म कराया जा चुका है और उद्योगपति धर्मवीर दानवीर, गुरु भक्त श्री युगल किशोर जी बिडला-जोकि इसे भारत के राष्ट्रीय संग्रहालय में राष्ट्रपति के प्राधेशानुसार रखा गया है। आचार्य श्री को अपना धर्म गुरु ही मानते हैं। इस ग्रन्थ से बहुत प्रभावित गत वर्ष जन प्रदर्शनी तथा सेमिनार के आयोजन पर इस ग्रन्थराज हुए उन्होंने भी यह प्रेरणा की कि इस ग्रन्थ को प्रकाश में लाया जाए और की प्रदर्शनी की गयी थी। जनता इसको देखकर पाश्चर्य चकित तथा मुग्ध हो उन्होंने क्रियात्मक रूप से सहयोग के नाते इस ग्रन्थ के प्रकाशन में जो विद्वानों । पर व्यय हो वह देना स्वीकार किया। उनके इस महान दान से हमको और भी गयी थी 1 जनता की पुकार थी कि इसे शीन प्रकाश में लाया जाए। प्रेरणा मिली । ग्रन्थ के कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक नियमित यह ग्रन्थराज स्वर्गीय श्री पं० यल्लप्पा शास्त्री, ३५६ विश्वेश्वरपुर सकिल ' समिति देहली की प्रमुख साहित्यिक संस्था जैन मित्र मण्डल धर्मपुरा देहली के बेंगलौर के पास था । वे भी गत वर्ष देहलो में थे। इस ग्रन्थराज के तत्वावधान में ग्रन्यराज थो भूगलय प्रकाशन समिति के नाम से स्थापित की प्रति उनकी अपूर्व श्रद्धा तथा भक्ति थी। वे प्रातः स्मरणीय विद्यालंकार । गयी जिसमें देहली नगर के प्रमुख सज्जनों ने अपना सहयोग दिया। समिति प्राचार्य रल श्री १०८ देश भूषण जी महाराज के जोकि । वर्तमान में निम्न प्रकार है। गत वर्ष देहली में चतुर्मास कर रहे थे मम्पर्क में आये प्राचार्य थो संस्थाप-दिगम्बर जैनाचार्य श्री १०८ प्राचार्य देशभूषण जी के हृदय में जैन धर्म तथा जैन ग्रन्थों की प्रभावना की तो एक अपूर्व लगन है। महाराज। ही । प्राचार्य श्री ने इस गन्य की उपयोगिता देखकर इस ग्रन्थराज को प्रकाश संरक्षक-श्री सर्वार्थसिद्धि संघ बेंगलोर । में लाने का निश्चय किया। गत वर्ष इस विषय में काफी प्रयत्न किया गया।। सभापति-ला० अजितप्रसाद जी ठेकेदार ।
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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