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सिरि भूवजय
सर्वार्थ सिद्धि संघ. उपसौर-दिस्ती न दयिद शरीरवतपिसिद । जिनपि नाशेयजनरू ।धनकर्माटक वेन्टनु गेले मोक्ष । दनुभव मंगल काव्य ॥ १ दि शेयोळोम्बत्तर वशपोंड सूत्रांक । बसमानि पाहुड काव्य ॥ क्शवाद न ममात्म स्वसमय वेन्तुव ।कु समय नाशक काव्य । म र्वार्थ सिद्धिसम्पददनिर्मलकान्या धर्मवलौकिकगणित निर् ममबुद्विय नवलम् बिसिरुवर । धर्मानुयोगद वस्तु ॥
शर्मर निर्मल काव्य ॥५४॥ धरम मूरारु मूरन्क ॥८॥ धर्म समन्वय काय्य ॥८६॥ निम्मकार वाक्यास्क ॥७॥ धर्म भाषेगळेन्टोन्देळु ॥५६॥ मर्म पश्चदातुपूर्वि ॥ धर्म समन्वय गुरिणत 1800 कर्मय परिकेय गरिणत ॥ करमद संख्यात गरिणत ॥६॥ कर्मदसमुख्यात गुरिणत॥३॥ कर्मदनन्तानक गुरिणत ॥४॥ कर्मदुतकरुष्टवनन्त | कर्मसिद्धानतद परिणत ॥६६॥ निर्मलदध्यात्म बन्धम् ॥७॥ सर्वस्व सार भूवलय ॥॥ धर्ममन्गल प्राभूतवु meen
निर्मल शुद्धकल्याणम् ॥१०॥ धर्मवय्भव भद्र सौख्य १०१॥ न वकार मनतर दोळादिय सिद्धान्त। अवयव पूर्वेय ग्रन्थ।।दवतारदादि मदन' क्षरमन्गलानव अमनप्रप्रम का
अवरोळ अपुनरुकतानक ॥१०३॥ अकुनोडल पुनरुक्त लिपि ॥१०४॥ अवरोळ गादिय भन्ग ॥१०॥ सबिएरळ मूर्नालकु भन्ग ॥१०॥ इषु ऐदारेळेंन्टु भन्ग ॥१०७॥ सवोमबत्त्तु हतहन प्रोमदु ॥१०८॥ सविहनएरङ हदिमूरू भन्ग ॥१०६॥ अवु हदिनालक हदिनय्दु ॥११॥ अबु हविनार् हदिनेळ ॥१११॥ नव वेरडेने हदिनेन्टु ॥११२॥ अवु हत्तोंबत्तु इप्पत्तउ ॥११३॥ अवर सुन्द् ओमदेरळमूर ॥१॥ सवि नालकपदारेन्ट नग ॥११५॥ नदमुनमृबत्त अन्ग ॥११६॥ अव नलवत् मुन्देहत्अन्क ॥११७॥ सवि हत्त उ मरवत्तु भन्य ॥११॥ अबु हत्तए अरबत्तु भन्ग ॥११॥ सवियोमदेरडुमू लकु ॥१२०॥ अषु कूडल अरवक्तनाल्कु ॥१२॥
सवियन अरबत्नाल्कु भन्ग ॥१२२॥ अवरंकबदु तोमबदएर ॥१२३॥ अयु अडगिहृदु अन्तरव ॥१२४॥ दुळियलु मास्वरे साबिर मुन्हे । बळसिह अरवत्तोंदु ।। तिळियंक औसत्तर मूर ह रिमुन्दे । कळेये मंगलव ( बळसे पाहडवुम् ॥१२॥ EXEXExe = ६५६१ %DE
६५६१ अन्तर ७७८५४१४३४६ = प्राकृत और कर्नाटक ये दोनों भाषा सक्रमवतों है
संस्कृत अक्रमवर्ती अट्टविहकम्म वियला गिटिटय कज्जा परणटसंसारा।
प्रोकारम् बिन्दु संयुक्त नित्यम् ध्यायन्ति योगिनः । बिट्टसयलल्य सारा सिद्ध्या सिद्धिम् मम विसन्तु ॥शा
कामदं मोक्षवम् चैव ओंकाराय नमो नमः ॥१॥ * प्रारम्भ के जात रंग के प्रक्षरों को ऊपर से नीचे की तरफ पढ़ने से प्राकृत भाषा बनती है। *वीच के लाल रंग के अक्षरों को ऊपर से नीचे की तरफ पढ़ने से संस्कृत भाषा बनती है।