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सिरि भूवलय
सार्थ सिद्धि संघ, बैंगलोर-दिल्ली दि शेयोळ बंद अनन्त संख्यातद । वश दोळसमल्यातवदम् ॥ रस कमलगळेळ का विरिसिददिव्य । रससिद्धि जलपद्मगंध
॥४ ॥ , वरखेयोळिरुवत् 'क' दोळ कूडिद् अरबत्तु । सविर्यक वेटेंट वरोळ् । प्रवितिह श्रीपद् म हदिनारु स्वप्नद । अवयव स्थलपद्मगन्ध ॥४२॥ ट बरणेयोळिजनक दोनु कूसि एन । जय गत्तागर कूडिदरे ॥ नव पद्म व द रिवबरुवंक एळम् । सविवरे बेट्टद पद्य ॥४३॥ स मनाद ई मुरु पद्मग: नेल्ल । ममहरुदयद शुद्धरसद। गमकदोळ अंन्टद अंट म् एंटनु । श्रमथिल्लदे सोन्लेगेयदु य शद ध्यानाग्नियिम् पुटविड़े रससिद्धि। वशवागुवुदु सत्य मरिणयु ॥ रसमरिण मा क्षदेकामववहुदेम्ब । रस सिद्धियंक भूवलय ॥४॥ ल वमात्रबादरू दोषगळिल्लद । नवमान्कदादि अरहनत ॥ अवनेरडू कालननूदि अन् क् । सविये भाविसे महापन
॥४६॥ व रतरवादेर. आपाद पद्मगळोळु । बरुव अतीतानागतदा। वरदबादोंदु या समयद ट पर । दरियरि वर्तमान वनु थ रण थरण वेन्तुब रसमरिणयौषध । गरिणतवम् नागार्जुननु । क्षरणदोळगरि दनु गुरुविन द लातनु । गुरिगसुत लेन्टु कर्म बनु ॥४॥ सा धिसि केडिसुत सिद्धान्त मार्गद । प्रोविननकाक्षरविद्य।मोदहिम्सालक्षण धर्मदि. म ।प्रादि जिनेन्द्रर मतदिम्
॥४६॥ रा गवगेलिदवराग पेळिद दिव्यम् । नागसम्पगेय हूउगळम् ॥ सागर वुपमान गुरिणतव च रितेयम् । भोगव योगदोळ कूडि सि द्वरसवमाडि हवनु कोंदिह । बुद्धियज्ञानव केडिसि ॥ शुद्धात्म नेले इ ह सिद्धर लोकद । सिद्ध सिद्धान्त भूवलय र रशन माडलु सदर्शन बागि। परमात्म पादव गुरिगसे ॥ तिरुगिद कमल व दलगळ कूडलु । बर लोमदु साविर वेन्दु
॥५२॥ अरुहन पद पा भंग ॥५३॥ परमन पदपद्म दंग ॥५४॥ गुरुपरम् परेयादि भंग ॥५५॥ सरसादक हुटिटद भंग
॥५६॥ गुरु गळ उपदेश दंग ॥५७॥ परिशुद्ध परमात्मनंग ॥५८॥ सरसद हन्नेरडंग ॥५६ करणेय मूरु हूवन्ग परिमळ रसवगेलवन्ग ॥६॥ सरसाक्षरद् एळु भत्ग ॥६२॥ गुरुसेन गरगदवरन्ग ॥६३॥ सरमंगल काव्य भंग ना
र्मध्वजवदरोळ. केत्तिद चक्र । निर्मलदष्टु हूगळम् ॥ स्वर्मन वळगळ यवत् पो मदु सोन्नेयु। धर्मदकालु लक्षगळे प्रो पाटियंकदोळ ऐदु साबिर कूडे । श्रीपाद पद्म गंधजल (दंगजल)। रूपि अरूपियानो म दरोळ पळुव । श्रीपद्धतिय भूवलय का सि रि सिद्ध अरहंत प्राचार्य पाठक । वर सर्वसाधु सद्धर्म ॥ परमागम वद म् बरेव चयत्यालयादिरूव श्रीबिबमोमबत्तु की
करुणे योमबत्त इप्पत्तेलु ॥६८।। अरुहन गुणवेबत्तोंदु ॥६६॥ सिरियेळ्नूरिप्प मोमबतम् ॥७०॥ बरुव मदानकगळार एरडने कमल हन्नेरडु ॥७२॥ करविडिदेळंक कुम्भ ॥७३॥ अरहन वारिस प्रोम्बत्तु ॥७४॥ परिपूर्ण नवदनक करगी
सिरि सिद्ध नमह प्रोमहत्तु ॥७॥ द गरिणत राशियोळुत्पन्न वागिह । बगेबगेयन्कदक्षरद ॥ सोगसिनिम् मन्गलप्रा का र भद्रवु । बगेगे शुभदसोस्यकर ॥७॥ वि षरणर् एन्देने वरुद्ध मुनिगळ सम्पद । दिशेयोळु बह बालमुनिगे । वशवागद - शियतिशय हारदोहौसेदरे बन्विह शिवत् ॥ म नबु सिंहासन तनुवु चैत्यालय । जिनबिम्बदन्ते नन्नात्म । नेनुत प्रक्ष बाद भावद्रव्यर्गाळदाधनबधपुण्यभूवलय ॥६॥ म रेतिहदेहाभिमानदोळध्यात्म । सरमालेयोळु बन्धकरगे । अरहनत रूपि न द्रव्यागमकाव्य सिरि यिरप सिद्ध भूवलय । ०||
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