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सिरि भूघलय
सर्वार्थ सिद्धि संघ बैंगलोर-विस्य। म विरुद्ध सिद्धान्तवनु महाव्रतकेंदु। नवपदवणु प्रतकेंदु ॥ स वियागिसि प्रोढ मूढ-रीरिगोंदे ।नव पद भक्ति भूवलय
10 चियलियमल मुढ दमसरगुतलिया। जयपरीषहइष्पत्तेरडम् ॥ नय मार्गविंदगेल्दवर सद् वंशद। स्वयम् सिद्ध काव्य भूवलय .. य लयल दिक्कुगळ्हत्तनु बद्रेय । नलविनिम् धरसिद मुनि ॥ सलुवदिगंबर नेन्तेनुकेळुव । बलिदनक काम्प भूवलय का
फलियंक काव्य भूवलय ॥११॥ बलशलिगळभूवलय ॥१२॥ कळेयद पुण्य भूबलय १ गेलवेरिसुव भूबलय ॥१४॥ विलयगंवघद भूवलय ॥१५॥ जलज बदलद भूगलल Man सलुव प्रमाण भूवलय ॥१७॥
सलेसिद्धधवल भूवलय ॥१८॥ लावण्यदंग मैय्याद गोमट देव । आवागतन्न अपरगनिगे ॥ ईबागच के र बनधद कट्टिनोळकट्टि । दाविश्व काव्य भूबलय का गि जदहत्तनु पात्म धर्मवागिसि कोंड भजकर्गे श्रीविध्यगिरिय ॥ निज न त बवेळर दर्शनवन्नित्त । विजय धवलद भूवलय
॥२०॥ २ किनिसिल्लदाहत्तनु निदिद । तक्कजनकेपेळ्द महिमर् ।। सिक्करुस म सारसागर वो ळगेंब । घोक्क कर्माट भूवलय tट दि अनुभागबन्ध देप्रदेशवहोक्कु । विदियादिहदिनाल्कहोंदि । अदनल्लि मि धियागिशिवसौख्य होंदिद। पदवेमंगलकाटकवार य शस्बतिदेविय मगळाद माम्हिगे । असमान काटकद । रिसियुनि त् यबु अरवत्नाल्कक्षर । होसेद अंगय्य भूवलय ॥२३॥
___ रसद ओंकार भूवलय ॥२४॥ यशवेडगय्य भूवलय ।।२५॥ रसमूर गेरेय भवलय का
रिसिरिद्धि यरबत्त नाल्कु ॥२७॥ यशत्रु नालकारदु हत्तु ॥२८॥ रस सिद्धिया हत्तु प्रोमदु । क रुरणेयमबहिरनग साम्राज्यम् लक्ष्मिय । अरुहनु काटकद ।। सिरिमात य तनदे प्रोमरिम् पेळिव । अरबत्नालफंक भूवलय का जय सिद्धियादाप्रोम्देअक्षर ब्रह्म । नयदोळगअरबत् नाल्कु । जयिननेंस प्रयत्नदाकलेयतिशय । स्वयम् सिद्ध भंग भवलय ॥३१॥ मोति जरा मरणवनुगुणाकार । दातिथ्यबरेभागहार । ख्यातियभंगदोळरिब म विख्यात । पूत पुण्य भूवलय ॥३॥ पद पद्म दोळगणंकाक्षर विज्ञान । अदर गुणाकार मग्गि ॥ वदगि बंदा धया नि यरिथिगे सिलुकिह । सदधि ज्ञान भूवलय ॥३३॥
ण वपदकदिनगरिएसलोम्बत्तम्। अवरंक बनुलोम भंगा दवतारवयत्नपूर्वक ये भागिसे । अवनिगेयेळु भूवलय ॥४॥ है कद सम्योगदे भंगवागिह हत्तु ।सकलांक चक्र श्वरव ॥ अकलंक वादहत्त न् कद ओ मुंदे। प्रकटद पुरणकार बिन्यु ॥३५॥ ट कवनु महबीर नंतमुहूर्त दिमाप्रकटि सेदिव्य वारिणयलि ।। सकलाक्षरवम् ति दिदिह गौतम । नकलंक हन्नेरडंग ॥३ स वार्थसिद्धि येदेनलु अक्षर भंग । निर्वाहदोळगंक भंगम् ॥ सर्वांक यो गदोळ अरबत्तनाल्क ननेल्ल । निर्वहिसलु हत्तु भंग ॥३७॥ म रमवादाहत्तम्वळेसुव(कालदे)योग दे।निर्मलमशुद्धसिद्धान्तधर्मवहरडुवा गि न जिनपाद। शर्मर सिद्ध भूवलय ॥३॥ सा गर द्वीपमळेलय गणिसुव । श्रीगुरु ऐश्वरंक ॥ नागबनाकव न रकब मोक्षय। साधन वागिसिर्दक
॥३६॥ रा शियोळोस्दस्तेगेयलाराशियु घासियागदलेतु बिरुवा। श्रीशननन्तवपद वि ह संख्यात । दाशेयनन्त सम्ख्यात ॥४॥