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ॐ श्री वीतरामाय नमः श्री दिगम्बराचार्य बीर सेनाचार्यवोपदिष्ट श्री दिगम्बरखनाचार्य कुमुदेन्दु विरचित अंक भाषामग्री जैन सिद्धान्त शास्त्र
श्री भूवलय
हिन्दी अनुवाद कर्ता श्री दिगम्बर जैनाचार्य १०८ देशभूषण जी महाराज
प्रथम खण्ड
मंगल प्राभृत
"अ" अध्याय १.१-१ * प्राकृत
सं०७ अ महाप्रातिहार्य वयभवदिन्द । अषट गुरगनगळोळ्थे मदम् ।। सृष्टिगे मंगल पर्यायनित्त । हम जिनयेरावेनु ॥१॥ ८ वणेयकोतु पुस्तक पिन्छ पात्रेय। अवतारदा कमन्डलद ॥ नव रमन्त्र सिद्धिगे कारणवेन्दु । भुबलयोळपेळ्ब महिमा ॥२॥ रवणेयोळक्षरदंकन स्यापिसि । दवयवववे महावत ॥ अव बरिगे तकक शक्किगे वरवाद । मबमनगलब भवलय ॥३॥ चि हवाणि प्रोमकारदतिशय विहनिन्न । महावीरवारिग एनवेनुव ॥ हिमेय मनगल प्राभूत वेन्नुव । महसिद्ध काष्य भूवलय ॥४॥ है कयु द्विसम्योगबोळगेइप्पत्तेंटु । प्रकटदोळ रबत्तमकूडे ।। सकलांक दोळु व ट्ट सोल्नेये एन्टेन्टु । सकलागम ए
एनरेट
भंग ॥५॥ क मलगळेळु मुन्द के पोगुतिर्दाग। क्रमबोळगेरडु कालन्नूरु । ॥ तमलांक ऐबुसोल्नेयु पारुएरडेदु । कमलदगंध भूवलय ॥६॥ र मह वयबोळा कमलगळ् चलिपाग। विमलांक गेलुवन्दन । ।समवतुबेसदोळु भागिसे सोन्नेय विमलांक काव्य भूवस्म ॥७॥