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सिरि भूक्तय
सर्वार्थ सिटि संघ, मंगलोरलदिल्ली अभिनन्दन इन चारों का जन्म स्थान अयोध्या नगरो है ।१४५-१४६। इस तरह मनादि काल की परम्परा से चले पाये हुए अहिंसामय प्राशम्भवनाथ का श्रावस्ती है1९४७।
युर्वेद में दुष्टों ने अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए इस मायुर्वेद में जीव हिंसा सुमतिनाथ का विनिता पुरी है ।१४८६
1 की पुष्टि करके रचना किया है । अत: इन खलों के काव्य को धिक्कार है ।१६८। श्री पद्म प्रम भगवान का कौशाम्बो नगरी है ।१४६-१५०।
अत्यन्त सुन्दर इस अायुर्वेद शब्द का अर्थ मायु तथा शरीर मन वचन श्री भगवास पावना या शुपविनाय को जन्म भूमि वाराणसी
मोइन तीनों बलों को बढ़ाने वाला है। और यह आयुर्वेद शिव तथा क्रम बस है।१५१-१५२।
श्री चौबीस भगवान की परिपाटी से निकलकर मनके द्वारा उत्पन्न होकर पाया
हुआ प्राणवाय नामक शौलगुरण है । होल का अर्थ जीव है । यह जीव हमेशा श्री चन्द्रप्रभ भगवान को जन्म भूमि चन्द्रपुरी है ।१५३।
अपने स्वरूप से भिन्न होकर किसी पर पदार्थ रूप नहीं होता । जीव के अन्दर श्री पुष्पदन्त भगवान को जन्म भूमि काकंदी पुरी है १५४-१५५।
। आने वाले तथा जीव को घात करने वाले प्रशुद्ध परमाणुगों को दूर कर जीन शीतलनाथ भगवान की जन्म भूमि भद्रिला पुरी है ।१५६।
| के स्वरूप की रक्षा करना या अन्य आत्मघात करने वाले अशुभ परिणति से श्रेयांसनाथ भगवान की जन्म भूमि सिंहपुरी है ।१५७।
बघना इस शील मर्थात् जीवात्मा का स्वरूप ही शील है। श्री वासुपूजय भगवान की जन्म भूमि चम्पापुरी है ।१५८।
इस श्लोक में प्राणावाय शील का अर्थ जीव दया या जीव की रक्षा श्री विमलनाथ तीर्थकर की जन्म नगरी कौशलपुर है ।१५६॥
३ कर दिया है। जिस प्रायुर्वेद शास्त्र में जीव रक्षा की विधि न हो श्री धर्मनाथ भगवान को रत्नपुरी है ।१६०)
३ या जीव हिंसा की पुष्टि जिसमें हो वह मायुवद शास्त्र जीव की रक्षा किस श्री शान्ति, कुथुनाथ, और अरहनाथ की जन्म नगरी हस्तिनापुर है।
प्रकार कर सकता है ? मायुर्वेद शास्त्र का अर्थ सम्पूर्ण प्राणी पर दया करना १६१-१६२१
है यह दया धर्म मानव के द्वारा ही पाला जाता है। इसलिए इस मानव का धी मल्लिनाथ नमिनाथ को नगरो मिथिलापुरी है ।१६३।
कर्तव्य सम्पूर्ण प्राणो मात्र पर दया करना बतला दिया है। क्या प्रत्येक मानव श्री मुनिसुव्रत तीर्थंकर की जन्म नगरी कुशाग्र पुरो है ।१६४)
को दया धर्म का पालन नहीं करना चाहिए? अवश्य करना चाहिए । और श्री नेमिनाथ तीर्थंकर की जन्म नगरी द्वारावती है ।१६५।
नौमांक अर्थात् नौ अंक ही जीव दया है और यही जीवका स्वरूप है ।१६९। श्री भगवान महावोर तो कर की जन्म नगरी कुण्डल पुर है १६६।
जिस मायुर्वेद में एक जीव को मार कर दूसरे जीव की रक्षा करने इन तथंकरों का जहां-जहां जन्म है उनका जन्म ही यह भूवलय अन्य वाले विधान का प्रतिपादन किया गया है तथा जिसमें चरक ऋषि के आयुर्वेद
अर्थात् वैद्यागम को खण्ड कर अहिंसा आयुर्वेद का प्रति पादन किया है वह मह सूवलय प्रन्थ सम्पूर्ण विश्व के प्राणी मात्र का हित करने वाला है। । अहिंसात्मक आयुर्वेद है ।१७। यह सूवलय सम्पूर्ण संयम तप शक्ति त्याग इत्यादि परिश्रम से चार धातिया । प्रारणावाय से स्थावरादि जीवों की हिंसा करने से ही आयुर्वेद की कों के नष्ट होने के बाद श्री तोयंकर परम देवके मुखारबिंद से निकला हुआ है औषि तयार होती है अन्यथा नहीं क्योंकि जैन दर्शन में श्री भगवान महावीर है ।इस अहिंसामय भूवलय के अन्तर्गत निकले हुए अठारह हजार श्लोक ने सम्पूर्ण प्राणी मात्र की रक्षा करना प्रारणो मात्र का कर्तव्य बतलाया है। पुष्पायुर्वेद के हैं । और यह आयुर्वेद सम्पूर्ण जीव की रक्षा करने के लिए दया ! परन्तु आयुर्वेद की रचना प्रारणावाय के बिना अर्थात् प्राणी के वायु को घात अहित है।
किये बिना इस प्राणावाम पंचागम की दवाई तैयार नहीं होती । इसलिए